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यूएन की पाक को चेतावनी, जल्दबाजी में संशोधन न्यायिक स्वतंत्रता पर भारी, लोकतंत्र को खतरा

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने शुक्रवार को कहा कि पाकिस्तान द्वारा जल्दबाजी में अपनाए गए संवैधानिक संशोधन न्यायिक स्वतंत्रता को गंभीर रूप से कमजोर करते हैं। उन्होंने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है।

क्या है यूएन की मुख्य चिंता?

यूएन के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जारी एक वीडियो बयान में वोल्कर टर्क ने कहा कि 26वें संशोधन की तरह, नवीनतम संवैधानिक संशोधनों को भी कानूनी समुदाय और पाकिस्तानी लोगों के साथ बिना किसी व्यापक चर्चा के अपनाया गया है।

टर्क ने कहा, 'इन बदलावों को एक साथ लेने पर, न्यायपालिका को राजनीतिक हस्तक्षेप और कार्यकारी नियंत्रण के अधीन करने का जोखिम है।' उन्होंने सैन्य जवाबदेही और कानून के शासन के सम्मान के बारे में भी गंभीर चिंताएं जताईं।

टर्क ने चेतावनी दी कि इन संशोधनों से लोकतंत्र और कानून के शासन के सिद्धांतों के लिए दूरगामी परिणाम होने का जोखिम है, जिन्हें पाकिस्तानी लोग बहुत प्यार करते हैं।


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क्या हैं पाकिस्तान के नए संशोधन?

पाकिस्तान ने 13 नवंबर को नए संवैधानिक बदलाव अपनाए हैं।

न्यायिक शक्ति में बदलाव (27वां संशोधन) किया गया है। इसके तहत, एक नया फेडरल कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट बनाया गया है, जिसे अब संवैधानिक मामलों पर सुनवाई का अधिकार होगा। इससे सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां कम हो गई हैं, जो अब सिर्फ सिविल और क्रिमिनल मामले ही देखेगा।

इसके अलावा, सेना प्रमुख असीम मुनीर देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज बन गए हैं। इससे तीनों सेनाओं का पूरा कंट्रोल राष्ट्रपति और कैबिनेट से CDF के हाथों में चला गया है।

बयान के मुताबिक, 27वें संशोधन के तहत राष्ट्रपति, फील्ड मार्शल, मार्शल ऑफ द एयर फोर्स और एडमिरल ऑफ द फ्लीट को आपराधिक मामलों और गिरफ्तारी से जीवन भर की छूट मिल गई है।
 

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संवैधानिक संशोधन के खिलाफ विरोध

पिछले हफ्ते, पाकिस्तान की मानवाधिकार परिषद ने भी इन संशोधनों का विरोध किया था। काउंसिल ने कराची प्रेस क्लब के बाहर 27वें संवैधानिक संशोधन के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध कर रही अपनी सदस्य फरवा असकर और पत्रकार अलिफिया सोहेल की 'गैर-कानूनी गिरफ्तारी और पाँच घंटे की हिरासत' की निंदा की थी।


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