प्रतिक्रियाओं की बात करें तो आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के राजदूत माइक हकाबी ने कहा कि कुछ देश हमास पर दबाव डालने की बजाय इज़राइल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वहीं इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू का कहना है कि ग़ाज़ा पर पूरी तरह नियंत्रण ज़रूरी है ताकि हमास का अंत किया जा सके, हालांकि उनकी योजना से बंधकों की जान को ख़तरा है। हम आपको बता दें कि ग़ाज़ा शहर को हमास का केंद्र माना जाता है, और यदि इज़राइल इस पर नियंत्रण पा लेता है तो इसे "गेम चेंजर" माना जाएगा। लेकिन यह भी साफ़ है कि इससे मानवीय संकट और राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ सकती है।
सवाल उठता है कि क्या ग़ाज़ा पर इज़राइली क़ब्ज़ा दुनिया के लिए सही होगा? देखा जाये तो यह प्रश्न जटिल है और इसका उत्तर केवल नैतिक या रणनीतिक आधार पर नहीं दिया जा सकता। यदि इज़राइल ग़ाज़ा पर पूर्ण रूप से कब्जा कर लेता है, तो इसके कई संभावित प्रभाव हो सकते हैं।
सकारात्मक संभावनाओं की बात करें तो अगर हमास जैसी आतंकी संगठन की सैन्य क्षमताएं पूरी तरह समाप्त हो जाएं, तो इज़राइल की सुरक्षा बढ़ सकती है। साथ ही यदि भविष्य में ग़ाज़ा को एक निष्पक्ष, लोकतांत्रिक और शांतिप्रिय शासन को सौंपा जाए, तो क्षेत्रीय शांति की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। वहीं नकारात्मक प्रभाव की बात करें तो पहले से ही संकटग्रस्त ग़ाज़ा में नागरिकों के लिए हालात और खराब हो जाएंगे। लाखों लोग विस्थापित हो सकते हैं और खाद्य, जल, चिकित्सा जैसी ज़रूरी सुविधाएं और भी सीमित हो सकती हैं। इसके अलावा, इज़राइल का पूर्ण कब्जा कई मुस्लिम देशों के साथ उसके संबंधों को और बिगाड़ सकता है। सऊदी अरब और अन्य अरब देश फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के बिना इज़राइल से संबंध सामान्य करने को तैयार नहीं हैं। साथ ही कब्जा और सैन्य दमन से हमास का अंत हो सकता है, लेकिन इससे नए उग्रवादी गुट जन्म ले सकते हैं।
जहां तक यह सवाल है कि अमेरिका के समर्थन से इज़राइल के कदमों का खुद अमेरिका पर क्या प्रभाव पड़ेगा? तो इसमें कोई दो राय नहीं कि अमेरिका का लगातार इज़राइल के पक्ष में खड़ा रहना उसके अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर व्यापक असर डाल सकता है। इसके प्रत्यक्ष प्रभाव को देखें तो अमेरिका को संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ सहित कई वैश्विक संस्थाओं और देशों से आलोचना झेलनी पड़ सकती है। साथ ही अमेरिका की छवि मुस्लिम देशों में और खराब हो सकती है, जिससे मध्य-पूर्व में उसके रणनीतिक हितों को नुकसान हो सकता है।
इसके अलावा, अमेरिका में यह मुद्दा रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के बीच एक बड़ी वैचारिक खाई बन गया है। ट्रंप समर्थक खेमा इज़राइल का समर्थन करता है, जबकि डेमोक्रेटिक मतदाता, विशेष रूप से युवा वर्ग, फिलिस्तीन के पक्ष में अधिक सहानुभूति रखते हैं।
ग़ाज़ा की स्थिति का विश्व राजनीति पर भी गहरा प्रभाव पड़ने जा रहा है। हम आपको बता दें कि कनाडा, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता पर विचार कर रहे हैं। यह इज़राइल के लिए एक कूटनीतिक झटका होगा। इसके अलावा, सऊदी अरब और अन्य देशों के साथ सामान्यीकरण की संभावनाएं लगभग समाप्त हो जाएंगी यदि इज़राइल ग़ाज़ा पर स्थायी कब्जा करता है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय अदालतें ग़ाज़ा में हो रही घटनाओं की जांच कर सकती हैं, जिससे वैश्विक राजनीति में इज़राइल अलग-थलग पड़ सकता है।
जहां तक यह सवाल है कि क्या हमास के खत्म होने से दुनिया से आतंकवाद खत्म हो जाएगा? तो इसका जवाब है- नहीं। देखा जाये तो हमास का अंत आतंकवाद की समाप्ति नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं। जैसे- आतंकवाद केवल संगठन या व्यक्ति नहीं होते, बल्कि यह विचारधाराओं से प्रेरित होता है। जब तक राजनीतिक असमानता, अन्याय और धर्म के नाम पर कट्टरता रहेगी, आतंकवाद किसी न किसी रूप में बना रहेगा। इसके अलावा, इतिहास गवाह है कि एक संगठन के खत्म होने पर दूसरा, अधिक उग्र संगठन जन्म लेता है। जैसे अल-कायदा के बाद आईएसआईएस। साथ ही केवल सैन्य कार्रवाई आतंकवाद का स्थायी हल नहीं है। जब तक न्यायपूर्ण राजनीतिक समाधान नहीं मिलता, असंतोष उग्र रूप ले सकता है।
बहरहाल, ग़ाज़ा पर इज़राइली कब्जा विश्व के लिए समाधान नहीं, बल्कि नई समस्याओं की शुरुआत हो सकता है। यह कदम मानवीय, राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से अत्यंत जोखिम भरा है। अमेरिका का समर्थन इसे कुछ समय के लिए मजबूती दे सकता है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से अमेरिका की वैश्विक प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इजराइल को यह बात समझनी होगी कि हमास जैसी संस्था का अंत केवल एक अध्याय की समाप्ति है, न कि पूरी कहानी की। आतंकवाद से निपटने के लिए न्यायपूर्ण और समावेशी समाधान आवश्यक हैं, न कि केवल सैन्य दमन।
-नीरज कुमार दुबे
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