पुणे में विकसित एयरप्रेशर हेडबैण्ड विषाणुओं से कर सकेगा मनुष्यों की रक्षा
एक अभियंता और एक डॉक्टर की अनोखी खोज
पुणे - कोरोना के संक्रामक महामारी ने अभी पूरे विश्व में भय का माहौल बन गया है. इस बीमारी से विश्व में अब तक 3 लाख से अधिक जिंदगियां खत्म हो चुकी है. ऐेसे में कोरोना पर पूरी दुनिया में विभिन्न तरह की खोज की जा रही है.
ऐसे में एक राहत की खबर पुणे से आई है. यहां के एक डॉक्टर और एक अभियंता ने एक ऐसा एयरप्रेशर हेडबैण्ड बनाया है, जिसे कोई भी व्यक्ति अपने सीर पर पहनने के बाद वह कोरोना के संक्रमण से बच सकता है. यह अनुसंधान इस बीमारी को खत्म करने में काफी कारगर साबित हो सकता है.
पुणे में रहने वाले एक इंडस्ट्रीयल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर सुनीत दोशी तथा सिंहगढ़ डेंटल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. समीर पाटिल ने यह अनोखी खोज की है. इस हैडबैण्ड का पेटेंट कराने के लिए उन्होंने आवेदन भी किया है.
कैसे काम करता है यह हेडबैण्ड?
यह हैडबैण्ड जब हम सीर पर पहनते है तब हमारे चेहरे के ईर्द-गीर्द एक हवा का पर्दा (एयर कर्टन) तैयार हो जाता है. इससे जो भी हवा हमारे शरीर में प्रवेश करती है वह पूरी तरह से फिल्टर होकर जाती है. साथ में हमारे शरीर में प्रवेश करने का प्रयास करने वाले विषाणूओं को यह एयर कर्टन रोकने का काम करता है.
खास बात यह कि, यह हेडबैण्ड हवा के छोटे सिलिंडर को या फिर हवा के छोटे कॉम्प्रेसर से जुड़ा रहता है. यह हेड बैण्ड एक ओर हमारे शरीर में जाने वाली हवा को फिल्टर तो करता ही है, लेकिन किसी दूसरे व्यक्ति के श्वासोच्छवास से बाहर निकलने वाले सूक्ष्म जंतु, विषाणु या फिर प्रदूषित घटकों को हमारे शरीर में जाने से रोकता है, ऐसा दावा इन इस बैण्ड की खोज करने वाले दोनों अनुसंधानकर्ताओं ने किया है.
मास्क और फेसशिल्ड से होती है असुविधा
कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए हम मास्क और फेस शिल्ड का इस्तेमाल कर रहे है, लेकिन ज्यादा देर मास्क या फेस शील्ड चेहरें पर रखना असुविधाजनक होता है. इनसे चेहरे पर काफी पसीना आता है और खाना खाते वक्त या पानी पिते वक्त इसे बार-बार निकालना पड़ता है. वातावरण में फैले सूक्ष्म जिवाणु मास्क पहनने के बाद भी शरीर में जाने का खतरा बना रहता है. ऐसे में मास्क या फिर फेस शिल्ड के इस्तेमाल करने में काफी समस्याएं है.
हैड बैण्ड की सुविधा और खासीयत
जैसे किसी मॉल के दरवाजे पर हवा का पर्दा बना होता है, बिल्कुल उसी तरह हमारे चेहरे पर हवा का पर्दा इस हैड बैण्ड से रहेगा. इससे हमारे शरीर में शुद्ध हवा की आपूर्ति होगी और बाहर के सूक्ष्म जंतु, विषाणू और प्रदूषित घटकों को वहीं पर रोक दिया जाएगा.
कोई सूक्ष्म जीव हमारे चेहरे के पास आता भी है तो हवा के प्रेशर से वह हमारे चेहरे तक नहीं आ सकेगा, ऐसा दावा सुनीत दोशी और डॉ. समीर पाटिल ने किया है.
इस हेड बैण्ड की खिसायत यह रहेगी कि, जिस व्यक्ति ने यह हेड बैण्ड पहना है अगर वह अपने हाथों से चेहरे को स्पर्श करना चाहेगा तो उसे हवा का यह पर्दा महसूस होगा और वह चेहरे को हाथ लगाने से बचेगा, जिससे अगर किसी के
रिफिल और रिचार्ज है संभव
इस हेडबैण्ड से एयर सिलिंडर, कॉम्प्रेसर जूड़े होते है, जोकि इतने छोटे है कि उन्हें हम अपने बैग में भी रख सकते है. इस हैडबैण्ड को लगे एक सिलिंडर या कॉम्प्रेसर को छह से आठ घंटों तक इस्तेमाल कर सकते है.
इन सिलिंडर या कॉम्प्रेसर का घर पर ही रिफिलिंग भी करना संभव है. इसे इलेक्ट्रिक चार्जिंग करना भी आसान है. अभी इस हेडबैण्ड को अलग-अलग मॉडेल में बनाने की ओर अनुसंधानकर्ताओं का प्रयास चल रहा है.
कारखानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए और कोरोना के मरिजों पर इलाज कराने वाले डॉक्टर्स, नर्सेस और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए विशेष हैडबैण्ड बनाए जाएंगे. आम लोगों के लिए बनाए जाएंगे हैड बैण्ड की कीमत 3 से चार हजार तक रहेगी, ऐसी जानकारी सुनीत दोशी ने दी.
कीमत में किफायती बनाने की ओर प्रयास
आज भले ही इस हैडबैण्ड की कीमत ज्यादा महसूस हो रही हों, लेकिन लोगों की जरुरत को देखते हुए इस हैडबैण्ड की खरीद किसी भी आम आदमी की पहुंच में हों, इसके लिए इसकी कीमत को और कम करने का अनुसंधानकर्ताओं की ओर से किया जा रहा है. जल्द ही यह हेडबैण्ड आम लोग भी खरीद कर संक्रमण सबच सकेंगे, ऐसा विश्वास सुनीत दोशी और डॉ. समीर पाटिल ने व्यक्त किया.
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