क्या राष्ट्रपति चुनाव के चलते MVA गठबंधन में पड़ी फूट ? शिवसेना के द्रौपदी मुर्मू को समर्थन से NCP और कांग्रेस खफा
मुंबई। महाराष्ट्र में सियासत का नया अध्याय लिखा जा चुका है और अब सवाल खड़े होने लगे हैं कि क्या महा विकास अघाड़ी गठबंधन में फूट हो गई है ? ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव को लेकर शिवसेना ने द्रौपदी मुर्मू के प्रति अपना समर्थन जाहिर किया। जिसको लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस खफा नजर आ रही है। एनसीपी ने कहा कि शिवसेना ने अभी तक कोई समर्थन नहीं दिया। अभी अंतिम फैसला होना बाकी है।
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आपको बता दें कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का ऐलान किया है। इसके अलावा आदित्य ठाकरे का भी बयान सामने आया है। जिसमें उन्होंने कहा कि आज हमारे अलग-अलग राजनीतिक विचार हैं (भाजपा के साथ) लेकिन द्रौपदी मुर्मू एक आदिवासी महिला हैं और हम आदिवासियों का समर्थन करते हैं। इसलिए हम द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट करेंगे।
कांग्रेस ने जताई हैरानी
कांग्रेस नेता बाला साहेब थोराट ने शिवसेना द्वारा द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने पर हैरानी जताई। उन्होंने ट्विटर के माध्यम से अपना बयान जारी करते हुए कहा कि राष्ट्रपति चुनाव एक वैचारिक लड़ाई है। यह लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए चल रहा संघर्ष है। यह लड़ाई महिलाओं, पुरुषों या आदिवासियों, गैर-आदिवासियों के बीच नहीं है। वे सभी जो संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के पक्ष में हैं, यशवंत सिन्हा का समर्थन कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि शिवसेना ने द्रौपदी मुर्मू का समर्थन क्यों किया ? उन्होंने इसके कुछ कारण भी बताए, लेकिन इसके पीछे शिवसेना नेतृत्व की वास्तविक भूमिका के बारे में हम क्या कह सकते हैं ? उन्होंने कहा कि शिवसेना एक अलग राजनीतिक दल है, इसलिए वे अपनी भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि इस वैचारिक लड़ाई में शिवसेना द्वारा निभाई गई भूमिका समझ से बाहर है। जब अलोकतांत्रिक रास्ता अपनाकर राज्य सरकार को उखाड़ फेंका गया और शिवसेना के अस्तित्व को चुनौती दी गई।
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थोराट ने कहा कि शिवसेना महाविकास आगे चल रहे हैं, लेकिन उन्होंने यह फैसला लेते समय हमसे कोई चर्चा नहीं की।
गौरतलब है कि महा विकास अघाड़ी सत्ता जाने के बाद उद्धव ठाकरे धर्म संकट में फंस गए हैं। उनके सामने संकट है कि वो पार्टी बचाएं या फिर गठबंधन धर्म निभाएं। क्योंकि, उद्धव ठाकरे ने मातोश्री में पार्टी सांसदों की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में पार्टी के 22 सांसदों में से महज 15 ही पहुंचे थे और इन सांसदों में से ज्यादातर ने उद्धव ठाकरे पर द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का दबाव बनाया था। इतना ही नहीं विधायकों, पार्षदों के बाद कई सांसदों के भी एकनाथ शिंदे कैंप में शामिल होने की संभावना जताई जा रही है।
राष्ट्रपती पदाची निवडणूक ही वैचारिक लढाई आहे. लोकशाही आणि संविधान रक्षणासाठी सुरू असलेला हा संघर्ष आहे. स्त्री, पुरुष किंवा आदिवासी, बिगर आदिवासी अशी ही लढाई नाही.
— Balasaheb Thorat (@bb_thorat) July 12, 2022
जे संविधान आणि लोकशाहीच्या संरक्षणाच्या बाजूने आहेत ते सर्व यशवंत सिन्हा यांना पाठिंबा देत आहेत. pic.twitter.com/LSykyJ0b6L
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