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पाकिस्तान में एक निजी विद्यालय संघ की ओर से दिखाया गया मलाला विरोधी वृत्तचित्र

पाकिस्तान में दो करोड़ विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले एक निजी विद्यालय संघ ने इस्लाम और विवाह पर मलाला युसूफजई के विवादास्पद विचारों के विरोध में बुधवार को अपने विद्यालयों में ‘आई एम नॉट मलाला डे’ (मैं मलाला नहीं हूं, दिवस) का आयोजन किया। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित मलाला विनाशकारी बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण करने एवं बाढ़ प्रभावितों से मिलने के लिए मंगलवार को पाकिस्तान पहुंचीं। वह चार साल से भी अधिक समय बाद अपने देश लौटी हैं।

पाकिस्तान में भीषण बाढ़ की वजह से 1700 से अधिक लोगों की मौत हो गयी है जबकि 3.3 करोड़ लोग विस्थापित हो गये हैं और देश का एक तिहाई हिस्सा जलमग्न है। ‘‘आई एम नॉट मलाला डे’कार्यक्रम के नाम का संदर्भ युसूफजई की आत्मकथा ‘आई एम मलाला’से है। इसके तहत पाकिस्तान के निजी विद्यालय उनके (मलाला के) तथाकथित ‘ पश्चिमी एजेंडे’ को बेनकाब करने के लिए व्याख्यान एवं संगोष्ठियां आयोजित करते हैं।

‘ऑल पाकिस्तान प्राइवेट स्कूल्स फेडरेशन’ (एपीपीएसएफ) ने ‘‘आई एम नॉट मलाला-2’’ वृत्तचित्र भी दिखाया।यह संगठन देश में दो करोड़ विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है। ‘एपीपीएसएफ’ के अध्यक्ष कासिफ मिर्जा ने पीटीआई-से कहा , ‘‘इस डॉक्यमेंट्री में विवाह संस्था एवं परिवार के ढांचे पर मलाला के प्रहार को प्रमुखता से दिखाया गया है।’’ नवंबर, 2021 में युसूफजई ने बर्मिंघम में एक निजी समारोह में अस्सेर मलिक से शादी की थी।

मिर्जा ने कहा कि इन व्याख्यानों एवं संगोष्ठियों के माध्यम से फेडरेशन ने 2,00,000 विद्यालयों में 15 लाख अध्यापकों के जरिए 2.6 करोड़ विद्यार्थियों को शादी पर मलाला के विवादास्पद विचारों के बारे में बताया। मलाला युसूफजई द्वारा अपनी पुस्तक में पाकिस्तानी सेना को ‘आतंकवादी’ घोषित करने के बारे में मिर्जा ने कहा, ‘‘ 12 अक्टूबर काला दिवस के रूप में भी मनाया जाता है तथा फेडरेशन से संबद्ध निजी विद्यालयों में सभी अध्यापक इस्लामिक पद्धतियों के बारे में मलाला के विवादास्पद विचारों पर उनकी निंदा करते हुए अपनी बांह पर काली पट्टियां पहनते हैं।’’

मलाला युसूफजई (25) पिछली बार मार्च, 2018 में पाकिस्तान आयी थीं। इस बुधवार को वह सिंध प्रांत में बाढ़ प्रभावित दादू जिले में गयीं। अक्टूबर 2012 में स्वात जिले में तालिबान के हमले से बचने के बाद से यह उनकी दूसरी पाकिस्तान यात्रा है। हमले में घायल होने के बाद उन्हें ब्रिटेन के बर्मिंघम के एक विशेष अस्पताल में ले जाया गया था। ठीक होने के बाद यूसुफजई ने घोषणा की कि वह लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक आंदोलन शुरू करेंगी। दिसंबर 2014 में यूसुफजई 17 साल की उम्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली सबसे कम उम्र की विजेता बनीं।



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