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टाटा की कंपनी ड्रोन से पहुंचाएगी दवाई, जांच के लिए लैब लाएगी सैंपल

बसंत मौर्य/ मुंबई. नमक से लेकर सॉफ्टवेयर के कारोबार तक फैला टाटा समूह अब स्वास्थ्य सेवा में भी बड़ी पारी खेलने की तैयारी में है। ऑनलाइन औषधि वितरण करने वाली टाटा 1एमजी मरीजों के लिए जरूरी दवाएं ड्रोन के जरिए पहुंचाएगी। डायग्नोस्टिक सेवा के लिए भी यह कंपनी ड्रोन का इस्तेमाल करेगी। इसके तहत दूर-दराज के क्षेत्रों में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों व कलेक्शन सेंटर्स से ड्रोन ब्लड सैंपल जांच के लिए लैब लाएगा। जांच रिपोर्ट पहुंचाने के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल होगा। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में पाइलट प्रोजेक्ट के तहत यह सेवा शुरू की गई है। तय जगह पर दवाएं-स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े उत्पाद पहुंचाए जा रहे हैं। सफलता मिली तो देश के अन्य शहरों में कंपनी ड्रोन सेवा का विस्तार करेगी। इस तरह की सेवा शुरू करने वाली 1एमजी देश की पहली कंपनी है। इसका मकसद मरीजों को समय पर दवा मुहैया कराना है। सड़क पर ट्रैफिक जाम की वजह से दवा पहुंचाने या रोगी का सैंपल जांच के लिए लैब लाने में कोई देरी नहीं होगी। इसके लिए 1एमजी ने ड्रोन लॉजिस्टिक सेवा प्रदाता टीएसएडब्ल्यू से हाथ मिलाया है। टाटा ग्रुप की पहल से ड्रोन बनाने वाली कंपनियों व सेवा प्रदाताओं की उम्मीदें बढ़ गई हैं। कई स्टार्टअप देश में ड्रोन बना रहे हैं। केंद्र सरकार की पीएलआइ योजना का लाभ भी इन्हें मिलता है।

सैंपल के लिए खास डिजाइन
ब्लड सैंपल के लिए इस्तेमाल होने वाले ड्रोन को खास तरह से डिजाइन किया गया है। सैंपल के बॉक्स में टेंपरेचर कंट्रोल की व्यवस्था की गई है। यह ड्रोन छह किलो वजन के साथ एक बार में 100 किमी दूरी तय कर सकता है। टाटा 1एमजी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी तन्मय सक्सेना ने कहा कि दुर्घटना से बचाव के लिए उड़ान से पहले और उड़ान के बाद ड्रोन की जांच की जाती है। ये ड्रोन स्मार्ट मैपिंग तकनीक और एंटी कोलिजन से बचाव की तकनीक से लैस हैं। इससे सुरक्षित मार्ग पता लगाने में मदद मिलती है।

कई राज्यों में सफल प्रयोग
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, केरल, तेलंगाना, दिल्ली, हरियाणा, प. बंगाल आदि प्रदेश में ड्रोन के जरिए दवा की सफल डिलीवरी की गई है। पहाड़ी राज्यों के दुर्गम इलाकों में कोरोना रोधी टीका ड्रोन पहुंचा चुके हैं। दवाएं पहुंचाने व ब्लड सैंपल लाने-जांच रिपोर्ट पहुंचाने के लिए ड्रोन की सेवाएं ली जा रही है। नतीजे सकारात्मक हैं। माना जा रहा कि आने वाले समय में स्वास्थ्य-चिकित्सा सेवाओं में ड्रोन अहम भूमिका निभाएंगे।

समय पर डिलीवरी
पूर्वोत्तर के राज्यों में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) ने आइ-ड्रोन प्रोजेक्ट किया है। इसके तहत पूर्वोत्तर के दूर-दराज के क्षेत्रों में 17,275 यूनिट मेडिकल सप्लाई की गई है। इसके लिए 12 घंटे ड्रोन की सेवा ली गई, जिन्होंने 735 किमी दूरी तय की। जमीनी रास्ते से यही दवा पहुंचाने के लिए कम से कम 2000 किमी दूरी तय करनी पड़ती। डिलीवरी में 50 घंटे से कम वक्त नहीं लगता।

अंग पहुंचाने में मददगार
जानकारों का कहना है कि अंग प्रत्यारोपण में भी ड्रोन अहम भूमिका निभा सकते हैं। दान में मिले अंग को ड्रोन एक शहर से दूसरे शहर आसानी से पहुंचा सकते हैं। इसके लिए फिलहाल एयरएंबुलेंस का सहारा लिया जाता है। अंग को अस्पताल से एयरपोर्ट और एयरपोर्ट से अस्पताल पहुंचाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया जाता है। इस कारण ट्रैफिक जाम की समस्या होती है। इसके लिए लंबी दूरी तक उडऩे और ज्यादा भार उठाने वाले ड्रोन चाहिए। निर्माता इस दिशा में काम कर रहे हैं।

सरकार का समर्थन
आत्म निर्भर भारत मुहिम के तहत केंद्र सरकार ड्रोन कारोबार को प्रोत्साहन दे रही है। कई स्टार्टअप ड्रोन बना रहे हैं, जिन्हें सरकार की ओर से घोषित पीएलआइ योजना का लाभ मिलता है। पिछले साल मार्च में ड्रोन के लिए अनुकूल नीति घोषित की गई। ड्रोन उड़ाने के लिए गाइडलाइन भी तय की गई है।

चौतरफा इस्तेमाल
दुनिया भर में ड्रोन (drone) का चौतरफा इस्तेमाल हो रहा है। इस्टैटिस्टा के मुताबिक 48 प्रतिशत ड्रोन मैपिंग व सर्वे जबकि 34 प्रतिशत निगरानी में इस्तेमाल किए जाते हैं। जांच के लिए 6 प्रतिशत और डिलीवरी के लिए 7 प्रतिशत ड्रोन की सेवाएं ली जा रही हैं।



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