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प्रतिकूल टिप्पणी करते वक्त अदालतों को सतर्क रहना जरूरी : सुप्रीम कोर्ट


नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि किसी मामले में शामिल पक्षकारों के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करते समय अदालतों को ‘बेहद सतर्क’ रहना जरूरी है और कार्यवाही के लाइव प्रसारण के कारण अदालतों में की गई टिप्पणियों के अब दूरगामी परिणाम होंगे और इससे समाज को भारी नुकसान हो सकता है।

 

शीर्ष अदालत ने कहा कि सामान्य रूप से कानूनी प्रणाली और विशेष रूप से न्यायिक प्रणाली ने आभासी सुनवाई और खुली अदालती कार्यवाही के लाइव प्रसारण को अपनाने के कारण पहुंच और पारदर्शिता के एक नए युग की शुरुआत की है।

 

इसने कहा कि न्यायिक प्रणाली में ‘पहले कभी नहीं देखी गयी इस तरह की पारदर्शिता’ बहुत लाभ देती है, लेकिन इस तरह की अदालती कार्यवाही का संचालन करते समय न्यायाधीशों पर एक जिम्मेदारी का अहसास भी होता है।

 

न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह की पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा पिछले साल जुलाई में दिए गए एक आदेश को रद्द करते हुए अपने फैसले में ये टिप्पणियां कीं, जिसमें भ्रष्टाचार के मामले में एक जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान कुछ प्रतिकूल टिप्पणियां की गई थीं।

 

पीठ ने कहा कि अदालत की कार्यवाही के लाइव प्रसारण के कारण टिप्पणियों के अब दूरगामी प्रभाव होंगे और जैसा कि वर्तमान मामले में देखा जा सकता है, इसमें शामिल पक्षों की प्रतिष्ठा को बड़ी चोट लग सकती है।

 

पीठ ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में, अदालतों के लिए यह आवश्यक है कि वे मामले के पक्षकारों के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करते समय बेहद सतर्क रहें, ऐसी कोई भी टिप्पणी केवल तभी करें जब यह न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक हो। 

 

एमपी/एमएलए के खिलाफ सुनवाई : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह आम आदेश पारित करके उच्च न्यायालयों से यह नहीं कह सकता है कि वे सुनिश्चित करें कि विशेष सुनवाई अदालतें विशेष रूप से एमपी/एमएलए से जुड़े आपराधिक मामलों की सुनवाई करें और ऐसी सुनवाई पूरी करने से पहले अन्य मामलों पर सुनवाई ना करें।

 

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने ‘एमिकस क्यूरी’ व वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया की 17वीं रिपोर्ट पर सुनवाई करते हुए उक्त टिप्पणी की। हंसारिया एमपी/एमएलए के खिलाफ आपराधिक मामलों के निपटारे में तेजी लाने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई में अदालत की मदद कर रहे हैं।

 

पीठ ने कहा कि हम सभी उच्च न्यायालयों के लिए आम आदेश कैसे पारित कर सकते हैं? कुछ विशेष अदालतों में जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित मामलों की संख्या अन्य अदालतों के मुकाबले कम हो सकती हैं। पीठ ने कहा कि जिला विशेष में ऐसे लंबित मामलों की रिपोर्ट मिलने पर तेजी से सुनवाई करने का आदेश पारित करने में आसानी होगी।

 

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालयों को एमिकस क्यूरी की 17वीं रिपोर्ट में दिए गए सलाहों का अध्ययन करने दें और अदालत को स्थिति रिपोर्ट सौंपने दें। हंसारिया ने कहा कि वह एमपी/एमएलए के खिलाफ लंबे समय से लंबित मामलों की तेजी से सुनवाई और निपटारा सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश चाहते हैं क्योंकि ऐसे नेताओं के खिलाफ 5,000 से ज्यादा मामले लंबित हैं। (भाषा) 

 



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