हवा के प्रदूषित कण सांस के जरिए दिमाग तक पहुंचने से पार्किंसन बीमारी का खतरा ज्यादा
वॉशिंगटन. प्रदूषित हवा से इंसानों में पार्किंसन बीमारी हो सकती है। अमरीका में किए गए शोध में इंसानों में इसका 56 फीसदी तक जोखिम पाया गया। शोधकर्ताओं के मुताबिक हवा में पीएम 2.5 या इससे कम आकार वाले प्रदूषित कण सांस के जरिए मस्तिष्क तक पहुंचते हैं। ये मस्तिष्क में सूजन का कारण बन सकते हैं और व्यक्ति में पार्किंसन बीमारी विकसित हो सकती है।शोध न्यूरोलॉजी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने अमरीका के 2.20 करोड़ लोगों के मेडिकल डेटा का अध्ययन किया। इनमें से मानसिक विकार से जुड़े 90 हजार रोगियों का चयन किया गया। उनके आवास, आसपास के वातावरण और राज्य के बारे में जानकारी एकत्रित की गई। अमरीका के बैरो न्यूरोलॉजिकल इंस्टीट्यूट के प्रमुख शोधकर्ता प्रो. ब्रिटनी क्रिजानोव्स्की ने बताया कि रोगियों के सूक्ष्म प्रदूषित कणों के संपर्क में आने के बारे में भी जानकारी जुटाई गई।
रोग के हॉट स्पॉट
शोधकर्ताओं पाया कि वायु प्रदूषण और पार्किंसन रोग के बीच संबंध अमरीका के हर हिस्से में समान नहीं है। ओहियो नदी घाटी, मध्य उत्तरी डकोटा, टेक्सास, कैनसस, पूर्वी मिशिगन और फ्लोरिडा के कुछ हिस्से पार्किंसन के हॉटस्पॉट थे। वहां वायु प्रदूषण ज्यादा था।
भारत में 10-12 लाख मरीज, युवा शामिल
पार्किंसन में हाथ या पैर से दिमाग में पहुंचने वाली नसें कमजोर हो जाती हैं। यह बीमारी धीरे-धीरे होती है। कई बार इसके लक्षण पहचानना मुश्किल होता है। आम तौर पर 60 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग पार्किंसन की चपेट में आते हैं, लेकिन भारत में युवाओं में भी यह बीमारी फैल रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इसका कारण फलों और सब्जियों में कीटनाशक का इस्तेमाल है। भारत में इसके करीब 10 से 12 लाख मरीज हैं।
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