Putin के बुलावे पर क्या मोदी रूस के विक्ट्री डे में शामिल होने नहीं जाएंगे, ट्रंप या फिर जिनपिंग हैं वजह?
एक खबर ने इन दिनों दुनिया की राजनीति और भारत की कूटनीति में हलचल मचा रखी है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रूस के विक्ट्री डे मिलिट्री परेड में शामिल होने के लिए न्यौता भेजा है। लेकिन करीब 10 दिन गुजर चुके हैं और भारत ने इसको लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। सवाल ये उठ रहा है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार विजय दिवस परेड में शामिल नहीं होंगे। अगर नहीं को इसके पीछे की असली वजह क्या हो सकती है?
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क्या है विक्ट्री डे परेड
9 मई का दिन रूस के लिए खासा महत्व रखता है। पूरी दुनिया की नजरें मॉस्को पर एक बार फिर से जाकर टिक गई हैं। रूस में 9 मार्च को हर साल विक्ट्री डे मनाया जाता है। हालांकि, 24 जून, 1945 को पहली विक्ट्री डे परेड हुई थी। इस दौरान रूसी सैनिकों ने न केवल नाजियों से मास्को के लिए लड़ाई लड़ी थी, बल्कि लेनिनग्राड और स्टालिनग्राड की रक्षा की थी। इसके बाद उन्होंने रेड स्क्वायर पर शानदार विक्ट्री डे परेड निकाली थी। इस दिन रेड स्कावयर में भव्य मिलिट्री परेड होती है। दुनिया के तमाम दोस्शोंत देशों के लीडर्स को इसमें बुलाया जाता है। भारत और रूस के रिश्ते सदियों पुराने हैं। जब पूरी दुनिया भारत को हथियार देने से मना करती थी तो रूस ने भारत का साथ दिया। रूस ने हमेशा भारत के लिए स्टैंड लिया। इसलिए विक्ट्री डे पर भारत के प्रधानमंत्री को आमंत्रण मिलना कोई नई बात नहीं है।
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लेकिन इस साल मामला थोड़ा पेंचीदा है। दरअसल, इस साल रूस ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और नार्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन को भी परेड में बुलाया है। दोनों ही नेता रूस यूक्रेन युद्ध में रूस का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। अब भारत की स्थिति थोड़ी अलग है। भारत ने हमेशा युद्ध का विरोध किया है और शांति का समर्थन किया है। अगर प्रधानमंत्री मोदी इस परेड में जाते हैं और वो भी किम जोंग उन व शी जिनपिंग के साथ स्टेज शेयर करते हैं तो इसका गलत सिग्नल दुनिया को जाएगा। अमेरिका और पश्चिमी देशों को तो खासकर। डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन युद्ध रोकने का ऐलान किया है। वो रूस और चीन दोनों के खिलाफ सख्त हैं। अभी अभी अमेरिका ने भारत पर लगने वाले टैरिफ को 90 दिन के लिए होल्ड किया है। एक म्युअचल ट्रेड डील पर भी बातचीत चल रही है।
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अगर भारत विक्ट्री डे में जाता है तो अमेरिका का नाराज होना तय है। ऐसे में भारत के लिए ये एक कूटनीतिक दुविधा है। दूसरी तरफ खबर आई थी कि भारत का रूस से हथियारों का आयात 2000 से 2019 के बीच 72 % था। यानी कुल खरीदे गए हथियार का 72 प्रतिशत रूस से भारत खरीदता था। लेकिन ये आंकड़ा 2020 से 2024 के बीच घटकर 36 % हो गया है। मौजूदा वक्त की बात करे तो भारत के हथियार आयात का 64 प्रतिशत स्वदेशी और पश्चिमी देशों को मिलाकर होता है। रूस से हथियारों के आयात में आई कमी के पीछे एक और मुख्य कारण रूस और यूक्रेन के युद्ध की वजह से स्पलाई चेन में आई कमी है। इसके अलावा भारत की राष्ट्रहित पहले की नीति। तमाम अच्छे रिश्तों के बावजूद फैसलों को हमेशा भारत के हित को देखकर ही लेना। इसी कड़ी में जब भारत को रूस के मुकाबले किसी पश्चिमी देशों से हथियारों की अच्छी डील मिलती है तो भारत उसका चुनाव करता है।
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