Special editorial: उत्सव के उन्मादी अंधेपन से कैसे होगा कोरोना का मुकाबला?
हिंदी में एक मशहूर कहावत है कि, भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि उसे बीन और उससे निकलने वाले संगीत की अभिरुची ही नहीं होती. कमोबेश यही हाल हमारे देश के लोगों में भी है. क्योंकि जिस तरह से जनता कर्फ्यु के दिन देश के कई सारे गधे थालियां बजाते हुए एकत्रित होकर जश्न मनाने की तस्वीरें सामने आई, इससे तो यही लगता है कि, इस जनता ने कर्फ्यू के पूरे समय पर पानी फेर दिया.
देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 22 मार्च को एक दिन का जनता कर्फ्यु लगाने का आवाहन किया था. इसका उद्देश्य काफी अच्छा था. देश की जनता एक दिन घर में ही रहें और बाहर जहां भी इस विषाणु का संक्रमण हों वह अधिक ना फैलें. लेकिन इस 'जनता कर्फ्यु' के दिन कई जगहों पर लोग इकठ्ठा हुए, ताली और थाली बजाई, कुछ जगहों पर रैलियां भी हुई, वह भी बैंड बाजे के साथ जिसमें कई लोग एकसाथ शामिल हुए. खुले आम कर्फ्यु का उल्लंघन किया, धारा 144 का उल्लंघन किया. क्या ऐसे उन्मादियों पर कार्रवाई करने की हिम्मत पुलिस जुटा पाएगी?
यह बात दिखाती है कि, किसी भी उत्सव या त्यौहार के लिए पागलपन की हद तक जाने वाला भारतीय समाज इस जनता कर्फ्यु को संजीदगी से लेने की बजाय उसने इसे भी एक उत्सव बना दिया. इस पूरी प्रक्रिया में जनता कर्फ्यु की पूरी ऐसी की तैसी करने में लोगों में कोई कमी नहीं रखी. यह बात हमारे मुर्खता की उच्चतम सीमा को दर्शाती है.
चीन से शुरू हुआ कोरोना वाइरस का संक्रण इस समय दुनिया के 200 देशों तक फैल चुका है. इस कोरोना ने अब तक करीब 12 हजार जिंदगियों को हमेशा के लिए खत्म कर दिया है. विकासशील ही नहीं बल्कि विकसित देशों में भी कोरोना इन्सानी जानों के लिए आफत बना हुआ है.
बाकी देशों की तुलना में भारत में अब तक इस कोरोना का घातक संक्रमण अब तक दिखाई नहीं दिया. लेकिन पिछले कुछ दिनों में भारत में भी इसका संक्रमण तेजी से फैलता ही जा रहा है. प्रतिदिन नये मामले सामने आ रहे है. इस सब को रोकने के लिए सरकार और प्रशासन तेजी से हरकत में आया. सरकार द्वारा कई सारे उपाय सुझाए गए. लेकिन किसी भी सरकार के उपाय तब तक ही असरदार रहते है जब तक जनता इसमें इमानदारी से साथ दे रही हो. वर्ना यह सभी प्रयास थोथले ही साबित होते है.
इस समय देश में कई जगहों पर लाॅक डाऊन किया गया है. महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में रेल, सडक यातायात रोके गए है. लोगों को घर से काम करने की सलाह दी जा रही है. 22 मार्च को एक दिन का जनता कर्फ्यु लागु करने की घोषणा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई.
कोरोना का विषाणु किसी भी सतह पर 12 से 24 घंटों तक रहता है. अगर उस सतह पर किसी का हाथ ना लगें तो वह नष्ट हो जाता है. इसे देखते हुए यह 14 घंटों का कर्फ्यु लगाया गया था. लेकिन विज्ञान से ज्यादा खोखले धार्मिक समारोह और उत्सवों पर विश्वास रखने वाला भारतीय समाज यहां भी अपनी अकल का दिवालियापन दिखा गया.
शाम को 5 बजे लोगों पूरे देश में अपने घर की खिड़कियां, गैलरियां, टेरेस पर जाकर थालियां और तालियां बजाई गई. मामला यहां तक तो ठिक था. लेकिन कई सारी जगहों के वीडियो थोड़ी ही देर में सामने आए और इस पूरे घटनाक्रम को लोगों ने एक इवेंट या उत्सव बना दिया.
दर्जनों की तादाद में लोग घरों से निकले. इकठ्ठा हुए. तालियां और थालियां बजाई. इसमें बच्चों से लेकर बड़ों तक शामिल हुए. मुंबई का एक वीडियो सामने आया जहां पर कई लोग चालियों की गैलरी में एक-दूसरे से सटे हुए थे और थालियां बजा रहे थे. कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए बताया गया है कि, दो लोगों में कम से कम 3 फीट की दूरी होनी जरुरी है. लेकिन यह एहतियात की बात किसी बौद्धिक परिधि में दूर-दूर तक नहीं थी.
कुछ जगहों पर दर्जनों लोग इकठ्ठा हुए और रैलियां निकाली गई. यहां पर धड़ल्ले से जनता कर्फ्यु, धारा 144 का उल्लंघन किया गया. लोग इस तरह जश्न मना रहे थे, जैसे कि उन्होंने कोरोना वाइरस के संक्रमण को 100 प्रतिशत तक मात दी. इस उन्मादी भीड़ को यह भी पता नहीं था कि, अभी और लम्बी लड़ाई बाकी है. हमने कोरोना पर अभी तक विजय प्राप्त नहीं की है.
लेकिन हमारी जनता में उत्सव का नशा मस्तिष्क की गहरी कोषिकाओं तक जाकर बैठा है. उसे लगता है कि, इस तरह से हम जब उत्सव मनाते है तो हमारा संकट अपने आप दूर हो जाता है. लेकिन यह पूरा अंधविश्वास है, ऐसा किसी ने बताया तो लोग उसे ही कोसते है. धार्मिक उन्मादों की इस परंपरा ने हमें पूरी तरह से अंधा ही बना दिया है.
इस सब का हमें संजीदगी से विचार करना होगा. क्योंकि कोरोना के खिलाफ हमारी लड़ाई अभी तो शुरू ही हुई है. यह लड़ाई काफी लम्बी खिंच सकती है. इसमें हमें दी गई एहतियातों का कड़ाई से पालन करना होगा. प्रशासन को भी सतर्क रहना जरुरी है, लेकिन जनता में भी जागृति आवश्यक है. सबसे पहले उत्सव के इस उन्मादी नशे से बाहर आकर वैज्ञानिक विचारों का अनुसरण करना होगा. वर्ना कोरोना का संक्रमण अगर बढ़ता ही गया और हम उत्सव के अंधेपन में रहें तो हमें सरकार, प्रशासन तो क्या भगवान भी नहीं बचा पाएगा.
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