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विदेश से वापसी कर भारत में पढ़ने की चाहत रखने वाले छात्रों के लिए बनें सार्थक शिक्षा नीति

सूर्यदत्ता इन्स्टिट्यूट्स के संस्थापक अध्यक्ष प्रो. डाॅ. संजय ब. चोरडिया की अपेक्षा 

The students who are studying abroad, but want to come India, Government have to make a comprehensive education policy for them

पुणे - भारत से प्रतिवर्ष लाखो की तादाद में छात्र यूरोप, यूके और अमरीका इत्यादी देशों की विख्यात यूनिवर्सिटीज में ग्रेज्युएट और पोस्ट ग्रेज्युएट की शिक्षा अर्जित करने के लिए जाते है. लेकिन इस समय कोरोना वाइरस के संक्रमण के चलते यूरोप, यूके और अमरीका में काफी गंभीर स्थिति बन गई है.

कोरोना वाइरस के संकट में विदेश से से बड़ी तादाद में भारतीय छात्र स्वदेश लौटे है और कई सारे छात्र लौटने की स्थिति में है. यह सभी छात्र उनकी बाकी शिक्षा को भारत में आकर पूरा करने चाहते है. ऐसे छात्रों के लिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय कोई ठोस शिक्षा नीति बनाएं, ऐसा अपेक्षा सूर्यदत्ता ग्रुप आॅफ इन्स्टिट्यूट्स के संस्थापक अध्यक्ष प्रो. डाॅ. संजय ब. चोरडिया ने व्यक्त की.

भारत की शिक्षा नीति ज्यादा से ज्यादा छात्रभिमुख हों और उन्हें बेहतरीन शिक्षा और करियर मिलें, इसके लिए प्रो. डाॅ. संजय चोरडिया पिछले कई वर्षों से प्रयासरत है. इसीके चलते वे छात्रों उच्च शिक्षा के संदर्भ में बेहतरीन मार्गदर्शन करते है. कोरोना की पृष्ठभूमि पर शिक्षा क्षेत्र के भविष्य के संदर्भ में उनसे बातचित करने पर उन्होंने सरकार से यह अपेक्षा व्यक्त की.

The students who are studying abroad, but want to come India, Government have to make a comprehensive education policy for them


डाॅ. संजय चोरडिया ने कहा कि, यूरोप, यूके और अमरीका की अलग-अलग यूनिवर्सिटीज विभिन्न कोर्सेस के लिए विख्यात है. इसके चलते छात्र इंजीनियरिंग, एमएस, बीबीए समेत कई क्षेत्रों की उच्च शिक्षा अर्जित करने के लिए इन यूनिवर्सिटीज में एडमिशन लेते है.

लेकिन इस बार कोरना वाइरस के चलते वहां पर हजारो की तादाद में लोगों की मृत्यु हुई है और लाखो लोग कोरोना से संक्रमित है. अमरीका और यूरोप के सबसे अमीर और ताकतवर देश जैसे ब्रीटेन, फ्रान्स, जर्मनी, इटली, पुर्तगाल समेत करीब-करीब पूरे यूके-यूरोप कोरोना का सबसे ज्यादा सबसे ज्यादा कहर टूटा है. इसके चलते वहां के शिक्षा संस्थानों का कामकाज आज पूरी तरह से ठप्प पड़ा है.

जब कोरोना के कहर की शुरुआत हुई थी, तभी इन देशों से ज्यादातर छात्र स्वदेश लौट आए थे और कई सारे छात्र आने की तैयारी में है. कोरोना की अब की स्थिति को देखते हुए इसका असर कब खत्म होगा, यह बताना काफी मुश्किल है.

अगर कोरोना का यह संकट खत्म भी हो गया तो शिक्षा संस्थान कब से शुरू होंगे, इसके संदर्भ में भी संदेह बरकरार रहेगा. ऐसे में छात्रों का काफी शैक्षिक नुकसान हो सकता है. छात्रों की इस स्थिति को देखते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय, विभिन्न राज्य सरकारें, यूजीसी, देश के विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय सब मिलकर तथा शिक्षाविदों की राय लेते हुए एक ठोस शिक्षा नीति बनाएं, जो यह तय करेगी कि, विदेश से लौटने वाले इन छात्रों की शिक्षा जहां से खंडित हुई है, वहीं से किस तरह से आगे पूरी की जा सकती है.

विदेश में तीन वर्ष का कोर्स कर रहे छात्र के दो वर्ष पूरे हो गए हों और एक ही वर्ष बाकी हों, ऐसे छात्रों को भारत में शिक्षा पूरी करनी हों तो अब के नियमों के तहत उसे फिर से वहीं पढ़ाई पहले से शुरू करनी होती है. कई छात्रों की वहां 50 से 75  प्रतिशत अब तक शिक्षा पूरी हो चुकी है.

25 से 50 प्रतिशत की शिक्षा केवल बाकी है. अगर यह छात्र भारत में पूरी करना चाहता हों, तो उसे फिर से पहले वर्ष की शिक्षा से शुरुआत ना करनी पड़े. क्योंकि ऐसा हुआ तो इससे छात्रों में एक निराशा का माहौल फैल सकता है. जो छात्रों के भविष्य के साथ-साथ देश का भविष्य भी खराब कर सकता है.

प्रो. डाॅ. संजय चोरडिया ने कहा कि, छात्रों की ट्रान्सस्क्रिप्ट को देखते हुए और विश्वविद्यालयों में उनके कितने क्रेडीट पूरे हुए और कितने बाकी है, इसके आधार पर उनके शिक्षा के पर्याप्त मापदंड निश्चित किए जाए और उन्हें भारत के विश्वविद्यालयों के तहत चलने वाले बेहतरीन महाविद्यालयों में बाकी शिक्षा पूरी करने का अवसर दिया जाए.

इससे उनके भविष्य का नुकसान नहीं होगा और उनका टैलेन्ट देश के ही काम आएगा. सरकार इस दिशा में कोई ठोस नीति बनाएं तो यह जरुर संभव हो सकता है. ऐसा हुआ तो अपनी शिक्षा और करियर को लेकर चिंता में डूबे छात्रों के लिए काफी राहत देने वाली बात हो सकती है, ऐसा मत डाॅ. संजय चोरडिया ने व्यक्त किया.

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