मोदीजी... आप वाकई में कुछ भूले तो नहीं !
वैसे हमारे प्रधानमंत्री काफी इवेंटप्रेमी दिखाई देते है. जब से वे प्रधानमंत्री पद पर आसीन है, तभी से देश से लेकर विदेशों तक विभिन्न प्रकार के इवेंट उन्होंने किए. इस काम में उन्हें काफी महारथ हासिल है. क्यों ना हों जब उन्हें सुनने के लिए हजारो लोग आते हों, उनके भाषणों को विभिन्न तरह के मीडिया पूरे विश्व के करोडो लोगों को तक पहुंचाने के लिए सुसज्जित हों, तो भला वे इस मौके को कैसे छोड़ेंगे.
खैर हम अपने महत्वपूर्ण मुद्दे पर (या औकात) पर आते है और फिर एक बार मोदीजी को सवाल पूछ ने का पाप (भक्तों की नजर में) करते है. वैसे तो हमारे पापों का हिसाब काफी लम्बा है. क्योंकि हमें मोदीजी को सवाल ना पूछने पर खाना ही हजम नहीं होता, तो खाना हजम करने के लिए हमें यह पाप करना पड़ता है. (क्या करें पापी पेट का सवाल है)
इस समय पूरे विश्व पर कोरोना वाइरस के संकट के घने बादल छाए हुए है. प्रतिदिन हजारो की तादाद में मौतों की खबर आ रही है. पानी से लेकर हवाई तक बड़े-बड़े जहाज, फौजी टैंक, युद्ध पोतों से लेकर एयरफोर्स तक बनाने वाले देशों की इस समय खुली आंख से भी ना दिखने वाले छोटे से जीवन में बैंड बजा रखी है.
कोरोना वाइरस का यह संकट अब भात में भी धीरे-धीरे अपने पांव पसार रहा है. देश में भी त्राहीमाम मचाने के लिए उसने पूरी तैयारी कर ली है. ऐसे में हमें कोरोना के राक्षस को हराना है तो वह साबित हो सकता है केवल और केवल आज के उन्नत मेडिकल साइन्स की मदद से ना कि किसी गौमूत्र, गाय का गोबर या फिर किसी नमाज या जियारत से.
लेकिन जिस देश में धार्मिक मान्यताओं की जड़ें जनता के दिलो-दिमाग में काफी गहराई तक फैली हों और वैज्ञानिकता की बजाय पुरातन और अवैज्ञनिक बातों पर लोग ज्यादा भरोसा करते हों और अपने सभी दुखों के निवारण के लिए कोई मसिहा आएगा, ऐसी मान्यता हों, तो उस देश के लोगों को ज्यादा समझाने का प्रयास मतलब मुर्खता के पत्थर पर अपने सीर को फोड़ने जैसा है. हालांकि, यह स्थिति देश के किसी भी राजनेता के लिए काफी पोषक भी होती है.
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