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देश की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों का पूंजिवादी चरित्र हुआ उजागर

मजदूर विरोधी रिपोर्ट संसद को भेजी गई, केवल वामपंथी सांसदों ने जताया विरोध

Capitalist character of various political parties of the country exposed

नई दिल्ली - विभिन्न पार्टियों के सांसदों के समावेश वाली स्थायी समिति ने हाल ही में कामगारों को वेतन दिलाने के संबंध में किसी भी मालिक को मजबूर ना किया जाए, ऐसी सिफारीश करते हुए मजदूरों के अधिकारों के खिलाफ जाने वाली रिपोर्ट संसद की ओर भेजी है.

29 सांसदों वाली इस रिपोर्ट को वामपंथी पार्टियों के दो और डीएमके के एक सांसद ने केवल विरोध जताया. लेकिन बाकी विभिन्न पार्टियों के सांसदों ने इस मजदूर विरोधी रिपोर्ट को अपना समर्थ दे दिया. इस घटना से देश के वामपंथी पार्टियों को छोड़कर बाकी पार्टियों का पूजिवादी रवैया उजागर हुआ है.

25 अप्रैल को 'द हिंदू' में इस संबंध में विस्तार से खबर छापी है. खबर के मुताबिक विभिन्न पार्टियों के सांसदों वाली एक श्रम संबंधी समिति ने औद्योगिक संबंध संहिता 2019 की रिपोर्ट हाल ही में संसद को पेश की है.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, कोरोना जैसी किसी भी महामारी के दौरान किसी भी उद्योग को तब तक मजदूरों का वेतन देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, तब तक कि पूरी स्थिति सामान्य होकर उद्योग सुचारू रूप से शुरू ना हों. यानी जब तक उद्योग शुरू ना हों, तब तक किसी भी उद्योगपति को मजदूरों की मजदूरी का भूगतान करने के लिए बाध्य करना अनुचित रहेगा.

यह सिफारीश पूरी तरह से देश के पूंजिवादी व्यवस्था को उजागर करती है. जहां एक ओर देश में तालाबंदी के चलते करोडो की संख्या मजबूर बेरोजगार हुए है. लाखो मजदूरों के परिवारों को भूखा रहना पड़ रहा है, ऐसे में इस तरह की सिफारीश करना मजदूरों और भी परेशानियों की दलदल में धकेल सकता है.

खास बात यह कि, इस समिति में शामिल तिन सदस्यों ने इस रिपोर्ट का विरोध करते हुए मजदूरों के साथ अपनी एकजूटता प्रकट की है. इनमें प्रमुख नाम हे कम्प्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) के केरल के राज्यसभा सदस्य तथा सीटु के राष्ट्रीय सचिव इलाराम करीम, सीपीआई के सांसद के. सुब्बारायन और डीएमके के सांसद षण्मुगम ने इसका विरोध किया.

इस संदर्भ में इलाराम करीम ने कहा कि, श्रम कानूनों में ले ऑफ़ की व्याख्या को व्यापक करते हुे उसे महामारी, प्राकृतिक आपदा तक बढ़ाना चाहिए और मजदूरों की इस समय खस्ता हालत को देखते हुए उन्हें फौरन वेतन दिलाने के लिए प्रयास करना चाहिए.

इस संसदीय समिति के अध्यक्ष बिजु जनता दल के सांसद भातृहरी महताब समेत काँग्रेस, तृणमूल काँग्रेस, राष्ट्रवादी काँग्रेस, शिवसेना, बहुजन समाज पार्टी, तेलंगाना राष्ट्र समिति, आईयूएमएल के सांसदों का समावेश था. इन सभी ने देश के उद्योगपति और पूंजिपतियों के समर्थन में तथा मजदूरों के विरोध में अपना मत दिया.

इस समय कोरोना वाइरस के संक्रमण के चलते पूरे देश में तालाबंदी की घोषणा की गई है. तभी से लगभग सभी उद्योग पूरी तरह से बंद है. देश के करोड़ो मजदूर बेरोजगार हो चुके है. लोग अपने गांव सैंकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर पहुंच रहे है. ऐसे में उनके पास ना खाने का साजोसामान है ना ही पैसे है. ऐसे में इस तरह की रिपोर्ट मजदूरों की स्थिति और भी बिगाड़ सकता है.

इस गंभीर स्थिति में भी केवल उद्योगपति-पूंजिपतियों के फेवर में इस तरह का रिपोर्ट पेश करना देश के कुल पूंजिवादी राजनीतिक ढांचे को भी उजागर करता है और पूंजिवादी पार्टियों और उनके सांसदों का संवेदनाहीन चेहरा सामने लाता है. खास बात यह कि, सांप्रदायिक मुद्दों पर हो हल्ला मचाने वाला मीडिया और गला फाड़ कर विभिन्न मुद्दों पर चिल्लाने वाले एंकर इस मुद्दे पर पूरी तरह से चुप्पी साधे दिखाई दे रहा है.

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