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Joshimath में भूमि धंसाव : हिमालयी आपदा की तैयार होती पृष्ठभूमि

जोशीमठ का अस्तित्व खतरे में है। हिमालयी शहर में जमीन के दिन ब दिन और धंसने तथा इमारतों में पड़ी दरारों के और चौड़ा होने के कारण वहां के बाशिंदों को अपना जीवन मुट्ठी से फिसलती रेत की तरह नजर आने लगा है। लोगों के सुरक्षित स्थानों का रुख करने के कारण कई परिवार जुदा हो गए हैं। पालतू जानवरों और मवेशियों की देखभाल करने के लिए भी कोई नहीं बचा है। ज्यादातर दुकानदारों ने या तो अपनी दुकान बंद कर दी है या फिर ऐसा करने की तैयारी में हैं। जोशीमठ के बाशिंदों को अपना भविष्य अधर में नजर आ रहा है।

उनका कहना है कि वे नहीं जानते कि उनके शहर को धरती की गोद में समाने में कितना समय लगेगा। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष एवं पर्यावरण कार्यकर्ता अतुल सती ने ‘पीटीआई-भाषा’ कहा, “एक और हिमालयी आपदा की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है। आने वाले दिनों में इसके कई निहितार्थ सामने आएंगे। आप शहर में जल्द मानसिक समस्याओं रूपी महामारी को पैर पसारते देखेंगे।” जोशीमठ में अनिश्चित भविष्य का डर लगातार बना हुआ है।

पत्थरों के आपस में टकराने की तेज आवाज के बीच उठीं नीता देवी घटना के दो हफ्ते बाद भी सदमे में हैं। उनके परिवार को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया गया है, लेकिन वह हर दिन यह देखने के लिए लौटती हैं कि उनका घर बचा हुआ है या नहीं। नीता देवी (65) नम आंखों से कहती हैं, “मेरी सरकार से बस एक गुजारिश है-हमें एक घर दे दें। हमें बस अपने सिर के ऊपर एक छत चाहिए।” नीता देवी के घर की नीली दीवारों पर लगाए गए लाल निशान के पास एक नारंगी स्टिकर भी चिपकाया गया है, जिस पर लिखा है-‘इस्तेमाल करने लायक नहीं।’

यह दृश्य नीता देवी के लिए दिल तोड़ने वाला है और उन्हें पल-पल उनके घर और शहर पर मंडराते खतरे की याद दिलाता है। अपने घर की दीवारों पर पड़ी दरारों की तरफ इशारा करते हुए नीता देवी कहती हैं, “हम यहां से कहां जा सकते हैं? मेरे बेटे का यहां फर्नीचर का कारोबार था, जो अब बंद हो चुका है। मेरा बेटा यहां के स्कूल में पढ़ने जाता था।” वह कहती हैं, “मेरे बेटे ने मुझे बताया कि इस घर में रहना खतरनाक है, क्योंकि आसपास की जमीन धंस रही है।”

नीता देवी और उनका परिवार यह दर्द अकेले नहीं झेल रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, उत्तराखंड के चमोली जिले में 6,150 फुट की ऊंचाई पर स्थित जोशीमठ धीरे-धीरे धंस रहा है। यह शहर लगभग 23 हजार लोगों का आशियाना है। आपदा प्रतिक्रिया दलों को तैयार रखा गया है और स्थिति बिगड़ने पर अधिकारियों ने शहर के 40 प्रतिशत हिस्से को खाली करने की योजना बनाई है। हालांकि, सती को डर है कि पूरे शहर को खाली कराने की जरूरत पड़ सकती है, क्योंकि हर जिंदगी मायने रखती है।

जोशीमठ में एक मंदिर और औली रोपवे सहित लगभग 850 इमारतों और फुटपाथों एवं सड़कों में दरारें पड़ गई हैं। अनुमानित 165 इमारतों को खतरनाक स्थिति में माना जा रहा है। कुछ होटल अब एक-दूसरे की तरफ झुकने लगे हैं। अभी तक 145 परिवारों के लगभग 600 सदस्यों को उनके घर से स्कूल, गुरुद्वारा, होटल और होमस्टे सहित अन्य सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जा चुका है। कुछ सड़कों से गुजरते समय भू-धंसाव से शहर में धीरे-धीरे मची तबाही की दास्तां पता चलती है।

जोशीमठ की स्थिति पर अध्ययन करने और जरूरी सुझाव देने के लिए सात संस्थानों के विशेषज्ञों की एक टीम गठित की गई है। लेकिन, सवाल यह उठता है कि इस हिमालयी शहर के धंसने की वजह क्या है? सरकार द्वारा नियुक्त मिश्रा समिति ने 1976 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में आगाह किया था, ‘जोशीमठ बस्ती बसाने के लिए उपयुक्त नहीं है।’ उसने इलाके में भारी निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। हालांकि, समिति की चेतावनी को गंभीरता नहीं लिया गया।

बाद के दशकों में जोशीमठ लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख प्रवेश द्वार के रूप में विकसित हो गया। उसकी नाजुक ढलानों पर अनियंत्रित गति से निर्माण होने लगा। इन ढलानों के बारे में विशेषज्ञों का कहना था कि ये अतीत में हुए भूस्खलन के मलबे से बनी थीं, लिहाजा इनके धंसने का खतरा है। क्षेत्र में सड़कों, बांधों और भवनों के निर्माण के दौरान बड़े पैमाने पर की गई ड्रिलिंग और खुदाई के लिए विस्फोटकों के इस्तेमाल ने इन ढलानों को कमजोर बना दिया है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर में भूविज्ञान और भूभौतिकी के प्रोफेसर अभिजीत मुखर्जी कहते हैं, “हिमालय में मानव जनित भूस्खलन होने के प्राथमिक कारणों में से एक यह है कि सड़कों का निर्माण करते समय लोग ढलान के पैर के अंगूठे को काट देते हैं। नतीजतन, चट्टानों का पूरा गुच्छा जो पैर के अंगूठे पर टिका हुआ था, पूरी तरह से अस्थिर हो जाता है और उसके गिरने की आशंका बढ़ जाती है।”

मुखर्जी ने ईमेल के माध्यम से दिए एक साक्षात्कार में ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “मैं कल्पना कर सकता हूं कि जोशीमठ के आसपास चल रहे विशाल सड़क निर्माण ने निश्चित रूप से ऐसी दुर्गम ढलानों को विकसित किया, जो दरकने और धंसने के प्रति बेहद संवेदनशील हैं।” लापरवाह निर्माण के अलावा, शहर के आसपास निर्मित कई पनबिजली परियोजनाएं भी विनाश के लिए जिम्मेदार हैं। भूवैज्ञानिकों एमपीएस बिष्ट और पीयूष रौतेला ने 2010 में तैयार शोधपत्र ‘जोशीमठ पर मंडराता आपदा का खतरा’ में कहा था कि तपोवन विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना चिंता का मुख्य विषय है। इसकी सुरंग ‘जोशीमठ के नीचे मौजूद भूगर्भीय रूप से नाजुक पूरे क्षेत्र’ से होकर गुजरती है।



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