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एक दूसरे की कितनी मदद कर सकते हैं भारत और एप्पल

-मुरली कृष्णन (नई दिल्ली से)

 

एप्पल अपने प्रोडक्ट्स बनाने के लिए चीन की फैक्ट्रियों पर काफी निर्भर रहता है। लेकिन अब यह अमेरिकी कंपनी भारत में प्रोडक्शन बढ़ाने की योजना बना रही है। एप्पल के सीईओ टिम कुक ने मई की शुरुआत में तिमाही नतीजों की घोषणा करते हुए कहा, 'अमेरिका में बिकने वाले ज्यादातर आईफोन अब भारत में बनेंगे।'

 

उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका में बिकने वाले लगभग सभी आईपैड्स, मैक, एप्पल वॉच और एयरपॉड्स का उत्पादन वियतनाम करेगा। यह फैसला अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ के असर को कम करने के लिए लिया गया। जिसके कारण एप्पल की सप्लाई चेन, बिक्री और मुनाफे पर भारी असर पड़ रहा था।

 

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी की सीनियर इकोनॉमिस्ट, लेखा चक्रवर्ती ने बताया कि भारत में आईफोन प्रोडक्शन बढ़ाना एक बड़ा मौका हो सकता है लेकिन इसकी कुछ चुनौतियां भी हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, 'गहराई से समझा जाए तो चीन की तुलना में कीमतों में प्रतिस्पर्धा, सख्त श्रम बाजार और कमजोर सप्लाई चेन जैसी समस्याएं दिक्कतें बढ़ा सकती हैं।'

 

चक्रवर्ती ने कहा कि भारत में आईफोन बनाना चीन के मुकाबले 5 से 10 फीसदी ज्यादा महंगा पड़ सकता है, क्योंकि यहां पर पुर्जे महंगे हैं और फैक्ट्रियों की उत्पादकता भी कम है। उन्होंने आगे कहा, 'इसके अलावा, इस निवेश के वित्तीय प्रभावों जैसे टैक्स से होने वाली आमदनी, इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश और संभावित सब्सिडी पर भी विचार करना जरूरी है।' उनका मानना है कि जोखिमों को कम करने और अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए एक संतुलित नीति जरूरी होगी।

 

भारत में आईफोन उत्पादन बढ़ा रहा एप्पल

 

फिलहाल करीब 20 फीसदी आईफोन भारत में बनाए जा रहे हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार एप्पल ने भारत में मार्च 2025 तक पिछले 1 साल में करीब 22 अरब डॉलर के आईफोन का उत्पादन किया, जो पिछले साल की तुलना में 60 फीसदी अधिक है। अमेरिकी कंपनी, एप्पल 2026 तक भारत में हर साल 6 करोड़ से ज्यादा आईफोन बनाने की योजना बना रही है। जिससे ना सिर्फ उत्पादन दोगुना होगा बल्कि भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण क्षेत्र को भी बढ़ावा मिलेगा।

 

भारत में मुख्य तौर पर 3 कंपनियां आईफोन के पुर्जे जोड़ने का काम करती हैं। फॉक्सकॉन, पेगाट्रॉन कॉरपोरेशन और टाटा ग्रुप की एक कंपनी, जिसे पहले विस्ट्रॉन के नाम से जाना जाता था। फॉक्सकॉन इनमें से सबसे बड़ी कंपनी है, जो भारत में आईफोन उत्पादन का अधिकतर काम संभालती है। इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने हाल में एक नई नीति की भी घोषणा की है।

 

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के आयात शुल्कों और खासकर चीन के साथ चले उनके टैरिफ युद्ध ने एप्पल को रणनीति बदलने के लिए मजबूर किया। हालांकि बाद में अमेरिकी सरकार ने स्मार्टफोन और सेमीकंडक्टर जैसे टेक प्रोडक्ट्स के लिए अस्थायी राहत की घोषणा की और दोनों ही देशों ने 90 दिनों के लिए टैरिफ विवाद को रोकने पर भी सहमति जताई है।

 

क्षमता बढ़ाना और सप्लाई चेन का बचाव

 

लीगलविज डॉट इन के संस्थापक, श्रीजय शेथ ने डीडब्ल्यू को बताया कि भारत को एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर, स्किल और टेक्नोलॉजी में भारी निवेश करना होगा। इस निवेश का बड़ा भार एप्पल को भी उठाना होगा। शेथ ने कहा, 'यह भारत के लिए व्यापार के नजरिए से एक बड़ी जीत है और उसे व्यापार के अनुकूल गंतव्य के रूप में मजबूती देता है। हालांकि यह पहले से ही संवेदनशील भारत-चीन संबंधों को और जटिल भी बना सकता है।'

 

शेथ का मानना है कि उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा चीन से भारत लाने की प्रक्रिया में तकनीक और विशेषज्ञता के ट्रांसफर करने में चुनौतियां आ सकती है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा, 'यह सोचना बचकाना होगा कि मौजूदा भू-राजनीतिक माहौल में चीन अपनी विशेषज्ञता, कुशल श्रमिकों की ट्रेनिंग और उत्पादन से जुड़ी मशीनरी को इतनी आसानी से भारत को सौंप देगा, खासकर जब उसे इस कारण निर्माण क्षेत्रों में नौकरियों का भारी नुकसान हो रहा हो।'

 

उन्होंने आगे कहा, 'असल जमीन पर यह योजना कैसे काम करेगी यह एक बड़ा सवाल है। खासकर जब बात अर्थशास्त्र, कुशल मजदूरों की उपलब्धता और पूरी सप्लाई चेन को फिर से तैयार करने की होगी।'

 

लगातार बनी हुई हैं चुनौतियां

 

सेमीकंडक्टर और एम्बेडेड सिस्टम्स की विशेषज्ञ कंपनी, इंडिसेमिक के सहसंस्थापक और सीईओ, निकुल शाह का मानना है कि भारत भविष्य में आईफोन की मांग को पूरा करने की क्षमता रखता है। लेकिन इसके लिए मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम को और मजबूत करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आईफोन का उत्पादन बढ़ने से भारत को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण नेटवर्क में अपनी भूमिका बढ़ाने का बड़ा मौका मिल सकता है।

 

लेकिन शाह ने यह भी साफ किया, 'यह सफल तभी हो सकता है, जब आधारभूत ढांचा और पुरानी नीति से जुड़ी चुनौतियों को दूर किया जाए। जिन्होंने भारत में मैन्युफैक्चरिंग प्रतिस्पर्धा को अब तक बाधित कर रखा है।' उन्होंने आगे कहा, 'यह कदम ‘मेक इन इंडिया' पहल के अनुरूप है और भारत को एक वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण हब में बदलने की क्षमता रखता है। हालांकि इसके साथ कुछ जोखिम भी जरूर आते हैं, जैसे कि किसी एक कंपनी पर बहुत अधिक निर्भरता हो सकती है और भू-राजनीतिक दबावों की आशंका भी बढ़ सकती है।'



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