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क्या भारत में जल्द हो सकती है स्टेबलकॉइन की एंट्री?

शिवांगी सक्सेना

कई देश क्रिप्टो आधारित डिजिटल मुद्राओं को तेजी से अपना रहे हैं। क्रिप्टोकरेंसी की लोकप्रियता बढ़ रही है। लेकिन बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी काफी अस्थिर हैं। इसकी कीमत में कई बार बड़े उतार-चढ़ाव आते हैं। ऐसे में स्टेबलकॉइन को एक स्थिर और भरोसेमंद विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है। ऐसे माहौल में अब भारत की ओर से भी इन्हें अपनाने के संकेत मिले हैं।

 

भारत में डिजिटल भुगतान और फिनटेक सेक्टर तेजी से विस्तार कर रहा है। ऐसे में भारत स्टेबलकॉइन की संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहता। भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि स्टेबलकॉइन जैसे नए डिजिटल प्रयोग पैसा और पूंजी के लेन-देन की प्रणाली को बदल रहे हैं। दुनिया में बहुत बड़ा परिवर्तन हो रहा है और सभी देशों को इसके लिए तैयार रहना चाहिए।

 

हालांकि भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक शुरुआत से ही क्रिप्टोकरेंसी को लेकर सावधानी और संशय में रहे हैं। आरबीआई कई बार क्रिप्टोकरेंसी को वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम बता चुका है। निर्मला सीतारमण के इस बयान ने भारत के रुख में एक अहम बदलाव का संकेत दिया है। 

 

इससे पहले आरबीआई के पूर्व कार्यकारी निदेशक जी। पद्मनाभन ने स्टेबलकॉइन को अपनाने के बारे में कहा था कि यह अन्य क्रिप्टोकरेंसी से अलग है। वैश्विक स्तर पर इसको अपनाया जा रहा है। उन्होंने सरकार से क्रिप्टोकरेंसी पर जल्द स्पष्ट नीति अपनाने की अपील की थी।

 

स्टेबलकॉइन क्या होता है?

क्रिप्टोकरेंसी जैसे बिटकॉइन और इथेरियम अस्थिर मानी जाती हैं। इनकी कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव आ सकता है। अचानक ज्यादा खरीद या बिक्री, हैकिंग की घटनाएं, या बड़े निवेशों के कारण इनकी कीमतों में भारी बदलाव की आशंका रहती है। कभी-कभी इनकी कीमतें सैकड़ों डॉलर तक भी घट-बढ़ सकती हैं। इससे निवेशकों और यूजर्स के लिए जोखिम पैदा हो सकता है। 

 

ऐसे में स्टेबलकॉइन एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आता है। यह डिजिटल मुद्रा होने के साथ-साथ पारंपरिक मुद्रा की विश्वसनीयता भी देता है। स्टेबलकॉइन की खासियत यह है कि इसकी कीमत अन्य क्रिप्टोकरेंसी के मुकाबले ज्यादा स्थिर रहती है। इसे इस तरह बनाया गया है कि इसकी कीमत ज्यादा बदलती नहीं है क्योंकि यह डॉलर और यूरो जैसी फिएट करेंसी से जुड़ी होती हैं। 

 

उदाहरण के लिए एक स्टेबलकॉइन की कीमत आमतौर पर एक डॉलर या एक यूरो के बराबर रखी जाती है। इसका मतलब है कि उसका मूल्य स्थिर रहता है। जैसे किसी देश की सरकारी मुद्रा या फिएट करेंसी का होता है। 

 

जानकार मानते हैं कि फिलहाल स्टेबलकॉइन की स्वीकार्यता बढ़ने के दो अहम कारण हैं। पहला है डॉलर के मूल्य में गिरावट और दूसरा, सोने की कीमतों में बढ़ोतरी। जिन देशों में मुद्रा की कीमत तेजी से गिर रही है, वहां अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए टेदर और यूएसडीसी जैसे स्टेबलकॉइन विकल्प बन रहे हैं।

 

स्टेबलकॉइन ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित एक डिजिटल मुद्रा है। इसे इंटरनेट के माध्यम से कहीं भी और कभी भी भेजा या प्राप्त किया जा सकता है। लेन-देन का ये तरीका तेज और पारदर्शी है। इसलिए इसका उपयोग अधिकतर अंतरराष्ट्रीय मनी ट्रांसफर के लिए किया जाता है।

 

बोलीविया ने कई वर्षों तक क्रिप्टोकरेंसी पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया हुआ था। लेकिन पिछले साल इसे हटा दिया गया। जिसके बाद से वहां स्टेबलकॉइन टेदर या यूएसडीटी की लोकप्रियता बढ़ी है। टेदर, डॉलर से जुड़ा स्टेबलकॉइन है। इस एक स्टेबलकॉइन की कीमत हर समय एक डॉलर जितनी होती है।

 

जापान ने साल 2022 में स्टेबलकॉइन को मान्यता दी। इसके लिए उसने एक बिल पारित कर कानूनी ढांचा तैयार किया। स्टेबलकॉइन की वैश्विक लोकप्रियता के चलते भी भारत भी इनकी ओर बढ़ रहा है। 

 

क्रिप्टो निवेश प्लेटफार्म मुद्रएक्स के फाउंडर एदुल पटेल का मानना है कि दुनिया के बड़े देश अब क्रिप्टो और स्टेबलकॉइन के लिए नियम बना रहे हैं। वैश्विक स्वीकार्यता ने इसमें अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने डीडब्लू को बताया कि सिंगापुर, यूएई, अमेरिका जैसे देश अपने बैंक और वित्तीय सिस्टम में डिजिटल मुद्रा को जोड़ रहे हैं। वे सुरक्षा के लिए नियम भी बना रहे हैं। भारत यह देख रहा है। 

 

एदुल पटेल कहते हैं, "पहले भारत क्रिप्टोकरेंसी को लेकर सतर्क था। सोचने में समय ले रहा था। लेकिन अब वह और सक्रिय हो रहा है। भारत अब क्रिप्टो को पूरी तरह से नकारने की बजाय इसे समझकर, सही नियम बनाकर और सुरक्षा के साथ अपनाने की तैयारी कर रहा है। दुनिया के बड़े देशों के अनुभव और तरीकों को देखकर भारत भी अपनी रणनीति बना रहा है ताकि देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था मजबूत हो और लोग सुरक्षित रूप से डिजिटल संपत्तियों का उपयोग कर सकें।”

 

कितना बड़ा है स्टेबलकॉइन का मार्केट? 

हाल ही में स्टेबलकॉइन का मार्केट बढ़ा है। साल 2025 के आंकड़ों के मुताबिक दुनियाभर में जितने भी स्टेबलकॉइन से जुड़े ट्रांसफर हो रहे हैं, उसमें यूरोप का हिस्सा 34 फीसदी है। यानी दुनियाभर के स्टेबलकॉइन ट्रांसफर का एक-तिहाई हिस्सा यूरोप में हो रहा है। यूरोप में यूएसडीटी और यूएसडीसी जैसे स्टेबलकॉइन प्रचलित हैं। 

 

साल 2024 में स्टेबलकॉइन का बाजार स्थिर और मजबूत रहा। साल 2024 में टॉप-10 फिएट-बेस्ड स्टेबलकॉइन की कुल मार्केट कैप लगभग 161 अरब अमेरिकी डॉलर था। यह क्रिप्टो मार्केट के कुल मूल्य का लगभग 8.2 फीसदी है। इसमें यूएसडीसी, यूएसडीटी और डाई की बड़ी भागीदारी रही।

 

जेपी मॉर्गन की एक रिपोर्ट के अनुसार अब अमेरिकी डॉलर समर्थित स्टेबलकॉइन बाजार की वैल्यू 225 अरब डॉलर हो गई है। यह दुनिया के कुल स्टेबलकॉइन बाजार का लगभग 99 फीसदी हिस्सा है। ये 3 ट्रिलियन डॉलर वाले बड़े क्रिप्टो बाजार का करीब 7 फीसदी हिस्सा बनाता है और यह बाजार अभी भी बढ़ रहा है। 

 

भारत की बात करें तो यहां लगभग 30 करोड़ स्टेबलकॉइन होल्डर्स हैं। यह संख्या दर्शाती है कि पारंपरिक डिजिटल भुगतान के मुकाबले लोग स्टेबलकॉइन पर ज्यादा भरोसा करने लगे हैं। डॉलर से जुड़े होने के कारण, स्टेबलकॉइन सीमा पार स्वीकार किए जाते हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय लेन-देन आसान होता है। यह भारतीय बैंकों द्वारा दी जाने वाली पारंपरिक रेमिटेंस प्रक्रिया की तुलना में कहीं सस्ते भी होते हैं।

 

भारत अपना रुख क्यों बदल रहा है?

शुरू से ही भारत क्रिप्टोकरेंसी के प्रति नकारात्मक रहा है। बिना नियंत्रण के क्रिप्टोकरेंसी का दुरूपयोग हो सकता है। साल 2020 में वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफटीएफए) की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि स्टेबलकॉइन का उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद जैसे गैरकानूनी कार्यों के लिए किया जा सकता है। ये डिजिटल और वैश्विक है। कई बार सेंडर और रिसीवर की पहचान गोपनीय रहती है। जिस से गैरकानूनी कृत्यों को करने वाले का पता नहीं चल पाता। इसी कारण से भारत भी सतर्कता बनाए हुए है। 

 

हालांकि भारत में क्रिप्टोकरेंसी पूरी तरह से बैन नहीं है। लेकिन इसको लेकर नियम बहुत कड़े हैं। वहीं अमेरिका में ‘यूएसबैक्ड' क्रिप्टो, विशेषकर स्टेबलकॉइन को लेकर ट्रंप सरकार सक्रिय हुई है। दुनियाभर में स्टेबलकॉइन का इस्तेमाल बढ़ रहा है। वहीं डॉलर की मांग कम हो रही है। इसलिए ट्रंप सरकार डॉलर से जुड़े या डॉलर-समर्थित स्टेबलकॉइन को नियमों के दायरे में ला कर उसे मजबूत करना चाहती है।

 

ओजी क्लब डाओ के पूर्व को-फाउंडर अमित कुमार भारत में वेब-3 और क्रिप्टोकरेंसी समुदाय के साथ काम करते हैं। उनका कहना है कि अमेरिका ऐसा कर के डिजिटल अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करना चाहता है। उन्होंने बताया कि इस साल का टोकन-2049 इवेंट भी इसी पर आधारित था। यह क्रिप्टोकरेंसी और वेब-3 को लेकर विश्व का सबसे बड़ा वैश्विक कांफ्रेंस है। अमित डीडब्लू को बताते हैं कि कांफ्रेंस का फोकस स्टेबलकॉइन पर था। सभी देश चाहते है कि स्टेबलकॉइन उनके देश की मुद्रा या विकसित ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित हो।

 

अमित बताते हैं, "जूनियर ट्रंप भी इस सम्मेलन में शामिल हुए थे और उन्होंने स्टेबलकॉइन के महत्व पर जोर दिया। आज हर देश अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाहता है और किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहना चाहता। वर्तमान में अधिकांश चीजों का मूल्यांकन अमेरिकी डॉलर के मानक पर किया जाता है। वहीं भारत भी अपनी डिजिटल अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा है। खासतौर पर ऐसा तंत्र जो भारतीय रिजर्व बैंक समर्थित हो। भारत अब रूपया-समर्थित स्टेबलकॉइन की संभावना पर गंभीरता से विचार कर रहा है।” भारत भी अपने लिए मजबूत डिजिटल अर्थव्यवस्था चाहता है। ऐसे में स्टेबलकॉइन एक बड़ी शुरुआत की ओर कदम हो सकते हैं।



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