खुशखबर.... इबोला पर वैक्सीन के संशोधन को मान्यता
अमेरिकी खाद्य और औषधी प्रशासन ने गुरुवार को इबोला पर इको-वैक्सीन को मंजूरी दी, यह वैक्सीन मर्क (Merck & Co Inc) द्वारा निर्मित किया गया था. यह संयुक्त राज्य अमेरिका में इबोला नामक खतरनाक बीमारी के उपचार के लिए स्वीकृत पहला टीका है.
'एर्वीबो' इस वैक्सीन का नाम है, जो ज़ैरे इबोला वायरस से बचाने में मदद करता है और इबोला बिमारी इन वायरस के कारण होता है. जैरे इबोला वायरस इबोला के प्रसार के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं. माना जाता है कि यह वायरस कांगो देश में फैले भयंकर इबोला में भी मौजूद है.
इस ११ नवंबर २०१९, को ही यूरोपीय आयोग ने इबोला के लिए एक वैक्सीन के लिए कंपनी मर्क कंपनी को इस टीके को विपणन करने के अधिकार प्रदान किये थे.
2014 में पश्चिम अफ्रीका में इबोला के प्रकोप के बाद से 'इरवेबो' नामक यह टीका विकसित गया गया था. यह पहले से ही एक विशिष्ट प्रोटोकॉल के हिस्से के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, ताकि लोगों को संक्रमण के जोखिम से बचाया जा सके, जैसे कि स्वास्थ्य कार्यकर्ता या इस बिमारी से बाधित एवं संक्रमित व्यक्ति.
यह निर्णय यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी (ईएमए) की सिफारिशों के अंतर्गत लिया गया हैं, जिसने इस वैक्सीन के लाभों और जोखिमों का आकलन किया है. यह एक दूसरे इबोला वैक्सीन रेजिमेंट (Ad26.ZEBOV, MVA-BN-Filo) के लिए नैदानिक परीक्षण की हालिया घोषणा पर आधारित है जो अब यूरोपीय संघ के होराइजन 2020 का हिस्सा हैं.
जैविक आतंकवादी हमले के डर से इस वैक्सीन को पहले से ही संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा संरक्षित किया गया था. जिसको मान्यता अभी दी गयी.
एक अन्य टीका, जिसे गवी कहा जाता है, को पाँच लाख संस्करणों के लिए संग्रहित किया गया है। मर्क का यह टीका एक ही खुराक में दिया जाता है, जो बीमारी को रोकता है. दस दिनों के भीतर इस बीमारी से बचाव होता है. येल विश्वविद्यालय में वैक्सीन तैयार करने की प्रक्रिया 1990 से शुरू की गई थी.
इ. स. २००० में कनाडा के नॅशनल मायक्रोबायॉलॉजी लॅबोरेटरी नामक संस्था ने डॉ. हेन्झ फेल्डमन इनके टीम द्वारा इस टीके की खोज की हैं, जिसका सम्बन्ध इबोला प्रोटीन से था.
इस वैक्सीन परीक्षण उत्तरी अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप और यहां तक कि पश्चिम अफ्रीकी देशों में भी किए गए हैं. Ervebo वैक्सीन अब तक 2,58,000 लोगों को दी गई है, और यह असरदार रही है, जिसमे अब तक 3350 लोग संक्रमित हुए हैं और उनमें से 2250 की मौत हो गई हैं.
इबोला बिमारी: एक वैश्विक संकट
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Image source: Google |
इबोला एक दुर्लभ लेकिन गंभीर बीमारी है जो इसी नाम के वायरस के कारण होती है. जिन रोगियों ने बीमारी का संसर्ग हुआ है उनमें मृत्यु दर पिछले समय में आये प्रकोपों में 25% से 90% तक दर्ज की गयी हैं.
2014-2016 में पश्चिम अफ्रीका में सबसे बड़ा प्रकोप आया था जिसमे 11,000 से अधिक मौते हुयी थी.
इबोला ज़ैरे के कारण डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो (डीआरसी) में मौजूदा प्रकोप ने लगभग 67% की घातक दर को दर्शाया है. जुलाई 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा "अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल" (Public Health Emergency of International Concern) घोषित किया गया. इसी दौरान 3 000 से अधिक लोग इबोला वायरस से संक्रमित हो गए थे. डब्ल्यूएचओ ने इस फैसले को अक्टूबर 2019 में तीन महीने के लिए और बढ़ा दिया
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