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क्या राहु-केतु ने तुम्हारे दिमाग को 'ग्रहण' कर लिया हैं?

क्या राहु-केतु ने तुम्हारे दिमाग को 'ग्रहण' कर लिया हैं?

आज का पूर्ण सूर्यग्रहण विज्ञानवादियों के लिए अभ्यास का दिवस रहा, वहीँ पर 'ग्रहण' को अजूबा समझने वाले करोडो भारतीय सालों से चल रही अंधविश्वास आग में आज भी झुलसते दिखाई दिए.

विज्ञान ने सिद्ध किया हैं की सूर्यग्रहण सूर्य और अपनी अपनी कक्षा में घूम रहे ग्रहों के एक-दुसरे के बीच आ जाने से होनेवाली एक स्वाभाविक प्रक्रिया हैं. पृथ्वी और सूर्य के बीच चन्द्रमा आने से जो काली छाया पैदा होती हैं उसे हम सूर्य को लगे ग्रहण के रूप में जानते हैं. मगर हजारो वर्ष की जाहिलियत को अभी तक विज्ञान दूर नहीं कर पाया इस बात को आज रेखांकित किया गया.

महाराष्ट्र के त्र्यंबकेश्वर नगर पालिका ने ग्रहणकाल में पानी की सप्लाई बंद रखी


इसमें अहम् किस्सा हैं महाराष्ट्र के त्र्यंबकेश्वर शहर का. इस शहर में पूरे देश से हजारो श्रद्धालु पूजा विधि करने आते हैं. मगर आज त्र्यंबकेश्वर नगर परिषद् ने ग्रहण के काल में सार्वजनिक जल वितरण प्रणाली को बंद कर पानी की सप्लाई रोक दी और अपने अंधश्रद्धालु होने पर मानो मुहर लगा दी.

वहीँ दूसरी ओर स्थानीय नागरिको ने त्र्यंबकेश्वर नगर पालिका के इस निर्णय को सही ठहराया हैं. माना की पूरा गांव इससे सहमत ना हो और हो सकता हैं जिन्होंने इसे सही ठहराया हैं, वह शहर में आने वाले श्रद्धालुओं की श्रद्धा को पुचकारने की कोशिश कर रहे हो. हो सकता हैं की लोगों के डर और खौफ पर ही यहाँ की अर्थव्यवस्था पनप रही हो.

कारण कुछ भी हो मगर महापुरुषों के आधुनिक महाराष्ट्र के लिए यह घटना किसी लांछन से कम नहीं हो सकती.

महाराष्ट्र एक ऐसा प्रदेश हैं जहाँ देश में सबसे पहला अंधविश्वास विरोधी कानून बनाया गया था, अब  यह देखना दिलचस्प होगा की महाराष्ट्र सरकार अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले नगर पालिका पर क्या कार्रवाई करती हैं.

शिरडी साई मंदिर ग्रहणकाल में बंद रहा

ग्रहणकाल में शिरडी के साईबाबा समाधी मंदिर को भी बंद रखा गया. इस दौरान यहाँ मंत्रोच्चार भी बंद रखे गए. जिस साईबाबा को उनके भक्त भगवान् का अवतार मानते हैं और वही भगवान् ने पूरे ब्रह्माण्ड का निर्माण किया ऐसा भी मानते हैं. उस भगवान् पर भला सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा के आने से भला ऐसा क्या फर्क पड़ना था जिस कारण मंदिर को बंद रखा गया?

क्या वह आज भी यह मानते हैं की साईचरित्र में लिखा गया 'ग्रहण' का मतलब राहु - केतु सूर्य को निगल लेना ही सही हैं? यह बात साईचरित्र जब लिखा गया उस समय काल की हैं जब ग्रहण का मतलब यह था. मगर आज राहु - केतु ने सूर्य को तो नहीं मगर इंसानी दिमाग को जरूर निगल लिया हैं. क्या साईं भक्त अपने विवेक बुद्धि को जगा नहीं सकते?

इसमें सबसे अहम् बात यह हैं की साईबाबा मंदिर का ट्रस्ट महाराष्ट्र शासन द्वारा संचलित होता हैं. इसके अध्यक्ष को महाराष्ट्र सरकार नियुक्त करती हैं. पर चलता तो हैं श्रद्धालुओं चंदे पर. इस लिए अंधविश्वास विरोधी कानून लाने वाले सरकार से भी कुछ ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती.

ग्रहणकाल में तीन दिव्यांग बच्चों को गर्दन तक जमीन में गाड़ दिया गया



कर्नाटक के कलबुर्गी जिले में ताजसुल्तानपुर गांव में 3 दिव्यांग बच्चों को ग्रहण काल में गर्दन तक जमीन में गाड़ दिया गया. ग्रहण काल में इन शारीरिक विकलांग बच्चों को जमीन में गाड़ देने से इनकी बिमारी ठीक हो सकती हैं, इस अंधश्रद्धा से यह जानलेवा कदम ग्रामीणों ने उठाया. सबसे अहम् बात यह हैं की इन बच्चों के माता पिता ने ऐसा करने के लिए मंजूरी दे दी थी.


इस बात की भनक जब जानवाड़ी  महिला संघठन की कार्यकर्ता अश्विनी को पता चली तब सम्बंधित अधिकारीयों की इसकी जानकारी दी. अधिकारीयों के कहने पर भी जब ग्रामीण माने नहीं तब वहा के भूतपूर्व एमएलए बी. आर. पाटिल ने ग्रामीणों को जैसे तैसे मनाया और बच्चों को जान की आफत से छुटकारा मिला.

ऐसी घटनाओं को जब सामने लाया जाता हैं, तो उसे धर्म के आड़ छिपकर एक बौना स्वरुप देने की कोशिश में लोग लगे रहते हैं. हालांकि धर्म से इसका कुछ भी सम्बन्ध नहीं आता हैं. ऐसी घटनाओं में ज्यादातर सम्बन्ध आर्थिक फायदा और धर्म के ठेकेदारों के अहंकार से होता हैं. कृपया ऐसी बातें लोगों को समझाए और विज्ञान के अधिक निकट जाने की कोशिश करें.

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