डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर `धर्मनिरपेक्ष` शब्द के खिलाफ थे; आरएसएस नेता के बयान से बढ़ सकता है विवाद
संविधान का निर्माण करते वक्त उसमें `धर्मनिरपेक्ष` शब्द लिखने के संदर्भ में डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर समेत कुछ सदस्यों ने आपत्ति दर्ज की थी. इस शब्द की इसमें कोई जरुरत नहीं, ऐसा इन लोगों का कहना था. इसलिए इस शब्द को संविधान से तत्काल हटा देना चाहिए, ऐसा विवादास्पद बयान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संयोजक नंदकुमार ने दिया.
दिल्ली में आरएसएस के एक पदाधिकारी के पुस्तक प्रकाशन समारोह में नंदकुमार बोल रहे थे. इस समय संघ के वरिष्ठ नेता कृष्ण गोपाल मौजूद थे. उन्होंने कहा कि, देश के संविधान की प्रास्ताविका में, यह देश लोकतंत्र संघराज्य, स्वायत्त, समाजवादी तथा धर्मनिरपेक्ष होगा, ऐसी बातें कही गई है. इनमें से `धर्मनिरपेक्ष` यह शब्द पश्चिमी देशों से आया है. उसकी हमारे देश में और संविधान में कोई आवश्यकता नहीं है.
आगे विवादास्पद टिप्पणी करते हुए नंदकुमार ने कहा कि, जब देश का संविधान बन रहा था, तब `धर्मनिरपेक्ष` शब्द को लेकर डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर समेत कृष्ण स्वामी अय्यर और सभी सदस्यों ने आपत्ति दर्ज की थी तथा इस शब्द की संविधान में कोई जगह नहीं बनती, ऐसा मत दर्ज किया था. लेकिन इस मांग को उस समय खारीज कर दिया गया.
बढ़ सकता है विवाद
इस बीच नंदकुमार के इस बयान से फिर एक बार `धर्मनिरपेक्ष` शब्द को लेकर विवाद उत्पन्न होने की संभावना है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पहले से इस भूमिका पर कायम है कि, जब देश में संविधान कायम हुआ, उस समय संविधान में `धर्मनिरपेक्ष` शब्द था ही नही. बल्कि यह शब्द 1976 में इंदिरा गांधी द्वारा डाला गया है. नंदकुमार के इस बयान से अब आरएसएस की भूमिका की कलई खुलती दिख रही है. साथ ही नंदकुमार ने मंतव्य दिया कि, 1976 में जब इस शब्द पर इंदिरा गांधी ने जोर दिया, उस समय डाॅ. आंबेडकर के मत को संज्ञान में नहीं लिया गया. हालांकि, डाॅ. आंबेडकर का महापरिनिर्वाण 1956 में ही हुआ था. इस मुद्दे को लेकर अब विपक्ष की ओर से तीखी प्रतिक्रियाएं आने की संभावना है.
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