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एक ब्राह्मण ने बनाया था भारतीय राज्य घटना का मसौदा

एक ब्राह्मण ने बनाया था भारतीय राज्य घटना का मसौदा
राजेंद्र त्रिवेदी

गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी का बयान

भारतीय संविधान बनाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले डॉक्टर बी.एन. राऊ ब्राह्मण थे और उनका योगदान खुद बाबासाहेब आंबेडकर मान्य कर चुके थे, ऐसा दावा गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी ने किया हैं. वह गाँधी नगर में आयोजित 'मेगा ब्राह्मण बिज़नेस समिट' में बोल रहे थे. इस वक़्त गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी भी उपस्थित थे.

अपने भाषण में राजेंद्र त्रिवेदी  आगे कहते हैं, डॉ. अंबेडकर ने खुद 25 नवंबर, 1949 को कहा था कि मुझे संविधान बनाने का श्रेय दिया जा रहा है, लेकिन वास्तविक श्रेय बी एन राऊ को जाता है.

त्रिवेदी आगे कहते हैं, कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के पहले भारतीय न्यायाधीश तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले बी. एन. राऊ ने 60 देशों के संविधान का अध्ययन कर बाबा साहेब अम्बेडकर को संविधान का पहला प्रारूप सौंपा था. हम सभी बाबा साहेब अम्बेडकर का नाम सम्मान के साथ लेते हैं लेकिन संविधान का पहला प्रारूप बनाने वाले व्यक्ति ड़ॉ. बी. एन राऊ थे, जो की एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे." हम सभी को डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का अभिमान हैं की उन्होंने संविधान सभा के पहले भाषण में बड़े मन से यह बात मान्य की थी.

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के भाषण की पीडीएफ के लिए यहाँ क्लिक करे और पेज नंबर 36 देखें. 

कौन थे बी एन राऊ?



एक भारतीय सिविल सेवक, न्यायविद, राजनयिक और राजनेता थे जिन्हें भारत के संविधान को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका के लिए जाना जाता था. वह 1950 से 1952 तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के प्रतिनिधि भी थे। उनके भाई भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर बेनेगल राम राउ और पत्रकार और राजनेता बी शिवा राव थे.

हर क्षेत्र में बेनेगल नरसिंह राऊ ने अपनी की प्रतिभा की छाप छोड़ी हैं. जो सम्मान उन्होंने प्राप्त किया वह उनकी महान प्रतिभाओं के साथ निरंतर परिश्रम एवं असाधारण क्षमता, और दुर्लभ विनम्रता के रूप में था, जो अक्सर उन्हें गुमनाम रहने के लिए बाध्य करता था.

राऊ ने संयुक्त राष्ट्र में एक प्रतिनिधि के रूप में भारत की सेवा की. 1949 से 1952 तक वह संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि थे, उसके बाद हेग में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था. उन्होंने जून 1950 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया. 
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