क्या ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनी के पूर्वज भारतीय थे?
जानें ईरान-अमेरिका संघर्ष का इतिहास...
एक तरफ अमरीका ने ईरान पर कड़े प्रतिबन्ध लगाने का इशारा दिया वहीँ उसके बाद भारत में ईरान के राजदूत अली शेगेनी ने कहा है की भारत इसके चलते कोई पहल करता है तो ईरान उसका स्वागत करेगा.वहीँ दूसरी ओर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनी और भारत के बीच विशेष सम्बन्ध भी सामने आ रहे है. एक भारतीय नागरिक ने अयातुल्ला अली खामेनी के दादा भारत के उत्तरप्रदेश से होने का दावा किया है.
बाराबंकी के किन्तुर के सय्यद अहमद मौसवी हिंदी ये आयतुल्ला अली खामेनी के दादा थे ऐसे दावा सय्यद निहाल अहमद काज़मी ने किया है.
एक भारतीय मीडिया के साथ बोलते हुए कहा की सय्यद निहाल अहमद काजमी ने कहा की मेरे रिश्तेदार बताते थे की खामेनी के दादा १८३० में भारत से इराक गये थे. सबसे पाहिले वे इराक के नजफ़ में गए उसके बाद वे ओमान गए. उनको वह सईद मुस्तफा नाम का बेटा हुवा सईद मुस्तफा का जो बेटा था वही आयतुल्ला अली खामेनी है.
उनके दादा और सय्यद निहाल अहमद काज़मी के दादा मौसेरे भाई थे ऐसा दावा सय्यद निहाल अहमद काज़मी ने किया है.
पिछले साल सय्यद निहाल ईरान गए थे उनको वहा उनके रिश्तेदारोंसे ये बात पता चली.
ईरान इराक संघर्ष का इतिहास
ईरान और अमेरिका का संघर्ष के १९५३ से शुरू हुआ है. उस वक्त अमेरिका की सीआईए और ब्रिटेन के एम्आई ६ इन दोनों गुप्तचर संस्थानों ने मिलकर ईरान सत्ता परिवर्तन किया था. लोकतांत्रिक सरकार के पंतप्रधान मोहम्मद मौसादेक इनको सत्तासे बाहर किया. वह ईरान के ३५ वे पंतप्रधान थे. १९५१ से १९५३ तक वे प्रधानमंत्री थे.इस सत्ता परिवर्तन का कारण था तेल. मोहम्मद मोसदैक ने एंग्लो - इरानियन तेल कंपनी के डॉक्यूमेंट की जांच करने की मंशा रखी थी. एंग्लो - इरानियन कंपनी ये ब्रिटिश कंपनी थी जिनके साथ ब्रिटेन के आर्थिक सम्बन्ध थे. कंपनी ने इस जांच में मदद करने से इंकार किया था. जिसके चलते ईरान सरकार ने तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण का निर्णय लिया. इसके बाद अमेरिका और ब्रिटेन ने मोहम्मद मौसादे सरकार को गिराकर उनके समर्थक मोह्हमद रज़ा पहलवी को पंतप्रधान बनाया.
इस घटना के बाद २६ साल तक ईरान में अमेरिका के समर्थक सरकार थी. १९७९ साल को इस्लामिक क्रांति हुयी जिसके कारण अमेरिका के समर्थक रहे मोहम्मद रज़ा पहलवी को अपनी सत्ता छोड़नी पड़ी. वह ईरान के आखरी राजा थे. उनके राज में १९७७ से ही आंदोलन शुरू थे आखिर उनको सत्ता छोड़नी पड़ी.
१६ जनवरी १९७९ को देश छोड़ कर दूसरे देश जाना पड़ा उस वक्त आयतुल्ला खोमेनी देश में ही थे उसके बाद अयातुल्ला खोमेनी सर्वोच्च नेता बने.

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