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भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले के 300 से अधिक मामले वापिस लिए गए

राज्य के गृह मंत्रालय ने लिया फैसला

File Photo

मुंबई - 1 जनवरी 2018 को पुणे के समीप भीमा-कोरेगांव ेमें भड़की हिंसा के संदर्भ में 348 मामले वापिस लेने का फैसला राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने लिया. इसके साथ ही मराठा आंदोलन के दौरान हुए 460 मामलों को वापिस लेने की घोषणा उन्होंने की. फडणवीस सरकार ने अपने हर वैचारिक विरोधी पर अर्बन नक्सल होने का ठप्प लगाने का तंज भी उन्होंने पूर्ववर्ति सरकार पर कसा.

पुणे से सटे भीमा-कोरेगांव में 1 जनवरी 2018 को हुई हिंसा के मामले में तब पुणे पुलिस ने कुल 649 मामले दर्ज किए थे. इसके संदर्भ में विधान परिषद में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए गृहमंत्री अनिल देशमुख ने बताया कि, इन 649 मामलों में से 348 मामले वापिस लिए गए है. इसके अलावा मराठा आरक्षण की मांग को लेकर हुए आंदोलनों में दर्ज कुल 548 में से 460 मामलों को भी वापिस लिया गया है.

भीमा-कोरेगांव हिंसा के संदर्भ में आगे बोलते हुए अनिल देशमुख ने कहा कि, भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के बाकी बचे मामलों को भी जल्द समीक्षा कर उन्हें वापिस लेने के संदर्भ में उचित फैसला किया जाएगा. हालांकि, जो गंभीर मामले है, जैसे सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना और पुलिस पर हमला करना ऐसे मामलों को वापिस नहीं लिया जाएगा. नाणार आंदोलन के भी तीन मामले वापिस लेने की घोषणा उन्होंने की.

बता दें कि, पेशवा साम्राज्य और अंग्रेजों में हुए युद्ध में महार रेजीमेंट के सैनिकों की याद में भीमा-कोरेगांव में एक विजयस्तंभ स्थापित किया गया है. इस युद्ध में विजय की 200वीं वर्षगांठ यानी 1 जनवरी 2018 को भीमा-कोरेगांव में जमकर हिंसा हुई थी.

1 जनवरी को महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे देश से आंबेडकरी समाज के लोग पहुंचे थे, जिसका कथित ताैर पर विरोध हिंदुवादी संगठन कर रहे थे. बावजूद इसके 1 जनवरी को हजारो लोग भीमा-कोरेगांव पहुंचे थे. इससे एक दिन पहले 31 दिसम्बर 2017 को पुणे के शनिवार वाड़ा में यल्गार परिषद हुई थी.

इस यल्गार परिषद में हुए भड़काऊ भाषणों के चलते ही भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की, ऐसा आरोप लगाते हुए उस समय पुणे पुलिस ने लगाकर कई लोगों को गिरफ्तार किया है. हालांकि, इस मामले में उस समय पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए गए थे.

राज्य में सत्ता परिवर्तन होने के बाद से ही राकां के अध्यक्ष शरद पवार भीमा-कोरेगांव हिंसा मामलों की समीक्षा की मांग की थी. साथ ही उन्होंने उस समय की फडणवीस सरकार पर पक्षपात करने का आरोप लगाया था. तभी से अटकलें यह लगाई जा रही थी कि, इस मामले में राज्य सरकार कुछ ना कुछ फैसला जरुर लेगी.
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