रीढ़ की हड्डियों की बीमारी से कैसे बचें?
अगर स्वाभिमान से जीना है तो ‘सीर उठाकर जियो’ ऐसा कहा जाता है. लेकिन सीर उठाकर जिने के लिए किसी भी व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी मजबूत रहनी चाहिए. लेकिन हमारी बदलती हुई जीवनशैली, काम का बढ़ता तनाव, खाने-पीने की आदतों में हुए असमान बदलावों के चलते रीढ़ की हड्डी की बीमारियां किसी भी व्यक्ति को अपनी जकड़ में लेती है.
यह समस्या गंभीर होने पर ऐसे मरिजों को डॉक्टर सर्जरी की सलाह देते है. लेकिन पुणे के वैद्य डॉ. विराज भंडारी (आयुर्वेद वाचस्पती) के पास रीढ़ की हड्डी से संबंधित गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरिजों का बगैर किसी सर्जरी के सफल इलाज होता है.
इस समस्या के संदर्भ में डॉ. भंडारी ने बताया कि, रीढ़ की हड्डी की कोई भी बीमारी दो तरह की रहती है. पहला है फिजियोलॉलीजकल तथा दूसरी मैकेनिकल. शरीर भाव और मानस भाव के बिगड़ने से फिजियोलॉजीकल बीमारी होती है.
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