ख़ुशख़बरी! भारत-चीन के बीच हुई सबसे बड़ी डील, कैसे मान गया ड्रैगन? 3750KM दूर लिखी गई पटकथा, जानिए पर्दे के पीछे की कहानी
भारत और चीन फिर से कैलाश मानसरोवर की यात्रा शुरू करने पर राजी हो गए हैं। भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से ये जानकारी साझा की गई है। दोनों देशों के बीच सिमा पर तनाव के चलते साल 2020 से ये यात्रा बंद थी। लेकिन इस साल गर्मियों में ये यात्रा फिर से शुरू हो सकती है। बताया जा रहा है कि दोनों देशों के बीच एक विशेष प्रतिनिधि बैठक में ये सहमति बनी। 26 जनवरी को भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री दो दिवसीय दौरे पर चीन पहुँचे थे। कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू करना दोनों देशों के बीच संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
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कैलाश मानसरोवर यात्रा का महत्व
कैलाश मानसरोवर को दुनिया के सबसे पवित्र पर्वतों में से एक माना जाता है। यह पवित्र पर्वत, जो शक्तिशाली हिमालय के केंद्र में स्थित है, सदियों से जीवित है। यह पवित्र शिखर तिब्बतियों, जैनियों और बौद्धों के लिए धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। तिब्बती मान्यता के अनुसार, कैलाश पर्वत को मेरु पर्वत भी कहा जाता है। कहा जाता है कि ये वह ब्रह्मांडीय धुरी है जो स्वर्ग और पृथ्वी को जोड़ती है। किंवदंती के अनुसार, यह पर्वत रहस्यमय संत डेमचॉक का भी घर है। 21,778 फीट की ऊंचाई पर स्थित, कैलाश पर्वत को हिंदू देवी पार्वती और त्रिमूर्ति परंपरा में विध्वंसक भगवान शिव का दिव्य घर मानते हैं। कई लोगों का मानना है कि शिव कैलाश पर्वत की चोटी पर ध्यान करते हैं, और आगंतुक वहां उनकी उपस्थिति को समझने आए हैं।
कैलाश का रहस्य
पिरामिड के आकार का पवित्र पर्वत, 'कैलाश पर्वत' सिर्फ एक पर्वत नहीं है, यह भगवान शिव का पवित्र निवास है, जिस पर आम आदमी का चढ़ना नामुमकिन है। एक ऐसा पहाड़ जिसके ऊपर हवाई जहाज तो नहीं उड़ सकता लेकिन पक्षी उड़ सकते हैं! नासा के साथ कई रूसी वैज्ञानिकों ने कैलाश पर्वत पर अपनी रिपोर्ट पेश की है। उन सभी का मानना है कि कैलाश वाकई कई अलौकिक शक्तियों का केंद्र है। विज्ञान ये दावा तो नहीं करता है कि यहां शिव देखे गए हैं। किन्तु ये सभी मानते हैं कि यहां पर कई पवित्र शक्तियां जरूर काम कर रही हैं। हिंदू धर्म में भी इसे पारंपरिक रूप से शिव के निवास के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो अपनी पत्नी देवी पार्वती और अपने बच्चों, गणेश और कार्तिकेय के साथ वहां रहते थे। इस पर्वत की एक और रहस्यमय विशेषता यह है कि यह स्थान बदलने के लिए जाना जाता है! हतप्रभ पर्वतारोही जिन्होंने इसके शिखर तक पहुंचने की कोशिश की थी, वे अपने अभियान के दौरान समय और स्थान का ध्यान नहीं रख पाए और इस तरह वापस लौट आए! पर्वतारोहियों ने बताया कि जब भी वे शिखर पर पहुंचने वाले होते थे, शिखर अपनी स्थिति बदल लेता था।
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भारत चीन संबंधों में सुधार
इसकी पटकथा दिल्ली से 3750 किलोमीटर दूर स्थित रूस के कजान शहर में लिखी गई। जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई थी। इस साल दोनों देशों के राजनयिक रिश्तों की 75वीं वर्षगांठ है। भारत की ओर से जारी बयान में कहा गया कि इस बात पर भी सहमति बनी। इस वर्षगांठ को मनाने के लिए दोनों देशों की ओर से कई तरह की गतिविधियां भी की जाएगी। मीडिया और थिंक टैंक के संवाद के साथ पीपल टु पीपल कनेक्टिविटी प्रोमोट करने पर भी सहमति बनी। चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में वांग यी ने कहा कि कजान में राष्ट्रपति शी जिनफिंग और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच हुई बैठक के बाद दोनों देशों की ओर से वहां हासिल हुई सहमति को बेहद सफलतापूर्वक तरीके से अंजाम दिया गया है। इसके अतिरिक्त, दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें फिर से शुरू करने और वीजा जारी करने पर भी सैद्धांतिक सहमति बनी।
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