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पाकिस्तान और वर्णव्यवस्था

पाकिस्तान और वर्णव्यवस्था

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हैं,

चर्तुवर्णयम् माया श्रीष्टाम् गुणकर्म विभागसा
(अर्थात् गुण और कर्म के आधार पर मेरे द्वारा समाज को चार वर्णों में विभक्त किया गया है)

भगवन श्रीकृष्ण ने चाहे जो भी कहा हो, इसके विपरीत चतुर्वण व्यवस्था से मची हुयी अफरातफरी ने हिन्दू समाज को ही नहीं इस भारत भूमि को भी तार तार कर दिया हैं.


इंसानों की सत्ता की लालच और अहंकार की भूख मिटते नहीं दिखाई देती. जिसकी वजह से भगवान् श्रीकृष्ण के कर्मों पर आधारित इस सिद्धांत को जाति व्यवस्था में रूपांतरित होना लगभग तय ही था. इसी बात का अंतिम परिणाम हैं की हिन्दुओं को आज अलग-अलग शक्लों में परिवर्तित किया जा चूका हैं.


श्रेष्ठता की इस होड़ ने सैंकड़ों पीढ़ियों को गुलामी की दलदल में इस कदर धकेल दिया की अंग्रेज और मुस्लिम आक्रामकों को पूरे 1000 साल यहां के लोगों से की गयी बर्बरता और यहाँ के संसाधनों की लूट खसोट से भी ज्यादा, आजादी के 70 सालों बाद भी वर्णव्यवस्था से जन्मे जाति व्यवस्था का भय आज भी कायम दिखाया जा रहा हैं.


चतुर्वर्ण व्यवस्था से पनपी जाति व्यवस्था को ब्राह्मणों के मत्थे मढ़ा जाता हैं, और ये स्वाभाविक भी हैं. जो ऊँची पायदान पर रहेगा उसे तो यह सब भुगतना ही पड़ेगा. हालांकि आज के जमाने में चतुर्वर्ण व्यवस्था बिलकुल ख़त्म होने के कगार पर हैं मगर ब्राह्मणों के पीछे पड़ा यह ब्रह्मराक्षस आज भी उनके पीछे पड़ा हैं.


जहां बाबासाहेब आंबेडकर और महात्मा फुले जैसे महान विचारवंतों द्वारा जाति व्यवस्था पर कड़ा प्रहार करते समय हर बार 'ब्राह्मण्य' शब्द का इस्तेमाल किया गया वहीँ आज के जमाने में पनपे विद्वान सीधा ब्राह्मण जाति का उल्लेख कर 2% ब्राह्मणों को डरा रहे हैं या उनका डर दिखाकर अपनी रोटियां सेंकने में लगे हैं.


ब्राह्मण्य शब्द एक प्रवृत्ति को दर्शाता हैं वहीँ ब्राह्मण शब्द एक जातिगत सम्बोधन ही हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं.


बी. जी. कोलसे पाटिल जो की रिटायर्ड हाई कोर्ट जज हैं, उनकी माने तो कश्मीर मुद्दे के लिए ब्राह्मणों को दोषी माना जाता हैं. (इसके पीछे का उनका तर्क या फिर कुतर्क सिर्फ वही बता सकते हैं). एक तरफ मुस्लिम कट्टरपंथ (वहाबी सोच) पूरे विश्व को मध्ययुगीन समाज व्यवस्था में परिवर्तित करना चाहती हैं, पर भारतीय समाजव्यवस्था को आज भी ब्राह्मणों का भय दिखाया जा रहा हैं. वास्तविकता में कश्मीर शुरू हुआ आतंकवाद पाकिस्तान और उनके आँका अमेरिकन साम्राज्य वादी नीतियों की देन हैं. लेकिन असली गुनहगार कभी सामने नहीं लाये जाते.


यहाँ अहम् सवाल यह हैं की क्या दुनियाभर में फैली वर्णव्यवस्था का जन्मदाता क्या ब्राह्मण (जाति) हैं? क्या वर्णव्यवस्था या जाति व्यवस्था किसी अन्य धर्मों में नहीं पायी जाति?


जरूर पायी जाति हैं, मगर उस पर ज्यादा बोला नहीं जाता, खासकर खुद को आधुनिक विचारधारा मानाने वाले विचारकों द्वारा.



पाकिस्तान जैसे कट्टर इस्लामिक राष्ट्र में शायद 'ब्राह्मण जाति' तो नहीं दिखेगी पर ब्राह्मण्य कूट कूट कर भरा दिखाई देता हैं.



पकिस्तान के जन्म से पनपी वर्ण व्यवस्था आज भी वहां कायम हैं. मगर हमारे देश में इस पर कभी चर्चा नहीं होती दिखाई देती इसलिए अभी पता चला और इसका श्रेय जाता हैं सोशल मीडिया को.


सिंध प्रान्त में रेंजर्स की नियुक्ति के लिए एक विज्ञापन पाकिस्तान सरकार ने प्रसिद्ध किया, और वहां पनप रहे ब्राह्मण्य दुनिया के सामने आया.


विज्ञापन कुछ इस प्रकार हैं. 





इस विज्ञापन के सही मायने समझने के लिए थोड़ा पाकिस्तान की आज की स्थिति का अभ्यास होना भी जरुरी हैं. वह अलग आर्टिकल का विषय हैं. मगर इस विज्ञापन में सबसे नीचे के row (j) को देखिये.  जिसमें लिखा हैं Non Combatant Enrolled (गैर लड़ाके - लड़ाई में शामिल ना होनेवाले पदों की भर्ती) जिसमे  टेलर,बार्बर, कारपेंटर, पेंटर, बूट मेकर, वाटर कर्रिएर और सफाई कामगार ऐसे तुलना में गैर जरुरी कामों में ही सिर्फ गैर मुस्लिम जिसमे बड़ी संख्या में वहां के हिन्दू, क्रिस्चियन, कादियानी (अहमदिया- जो मुस्लिम हैं पर वहां की संसद ने इन्हे गैर मुस्लिम करार दिया हैं) ऐसे लोगों को ही शामिल किया गया हैं.


माना की पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र हैं. इसलिए ऊपरी पदों को पर केवल मुस्लिम ही लिए जाते हैं. मगर Mess Waiter या 3 अंतिम पदों (g, h, i) के लिए गैर मुस्लिम को पात्र नहीं माना जाता हैं. क्यूंकि वहां के मुसलमान  किसी गैर मुस्लिम के हाथ का खाना तो दूर उनके साथ खाना भी पसंद नहीं करते. क्या यह वर्णव्यवस्था नहीं हैं?




हाल ही में आये क्रिकेटर शोएब अख्तर के बयान में दानिश कनेरिया (हिन्दू धर्मीय) के साथ पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के अन्य सदस्यों ने खाना भी खाना पसंद नहीं करने का जो दावा किया गया था क्या यह वर्णव्यवस्था नहीं हैं? इसके बारे में अधिक पढ़ें. 


Jogendranath Mandal

यह तो आज के पाकिस्तान की बात हुयी. पाकिस्तान के जन्म के समय भी एक ऐसा ही  कुछ घटा था. पाकिस्तान की वर्णवादी मानसिकता के शिकार हुए खुद उनके पहले कानून मंत्री जोगेंद्रनाथ मंडल भी हुए. जिन्होंने मोहम्मद अली जीना की पार्टी मुस्लिम लीग की सदस्यता ग्रहण की और पूर्व पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) के बड़े नेताओं में शामिल हुए. जीना की डायरेक्ट एक्शन के बाद एक तरफ पश्चिम पाकिस्तान (पंजाब) में कत्ले-आम चल रहा था उसकी प्रतिक्रिया बंगाल में दिखने लगी तब यह महाशय वहां के पिछड़े हिन्दुओं को दंगों में शामिल ना होने की सलाह दे रहे थे. सवर्ण हिन्दू उनका इस्तेमाल मुस्लिमों के खिलाफ ना करे इसलिए इन्होने एड़ी चोटी का जोर लगाया था.


इनका जीना प्रेम इतना बड़ा था की इन्होने भारत में रहने की बजाय पाकिस्तान जाना उचित समझा. जिसका कारण भी यहाँ की जाति व्यवस्था रही क्यूंकि वह पिछड़ी जाति के हिन्दू थे. जैसे ही पाकिस्तान बना तो वहां के मुस्लिम कट्टरतावाद ने इनका भ्रमनिरास किया.




इसके पीछे कई कारण रहे मगर यहाँ सिर्फ 2 मुद्दों पर चर्चा करेंगे.





इनके भ्रमनिरास होने का एक अहम् कारण माना जाता हैं की, कश्मीर पर आक्रमण करने के बाद कुछ सामरिक रणनीतियां बनाने के बारे में एक बैठक जीना की प्रमुखता में हो रही थी. तब इन साहब को जीना ने बाहर जाने को कहा, की हम कश्मीर मुद्दे पर बात कर रहे हैं आप यहाँ उपस्थित नहीं रह सकते. क्यूंकि वह धर्म से हिन्दू थे. इस वजह से इनके जीना साहब ने इनको गेट आउट कर दिया. 


 दूसरा एक किस्सा हैं पूर्व पाकिस्तान के गोपाल गंज का. जहाँ पर एक मुस्लिम मछुआरा जाल बिछाए मछलिया पकड़ रहा था. वहीँ उससे पहले से एक दलित हिन्दू (नामसुद्र जाति* का) भी जाल बिछा बैठा था. मुस्लिम मछुआरे ने उससे वहां से जाने को कहा. ना मानने पर व मुस्लिम मछुआरे ने बस्ती में जाकर झूट बोला की हिन्दू ने उसके साथ बदसलूकी की. उसी समय गोपाल गंज के उपविभागीय अधिकारी उसी जगह से बोट ले जा रहे थे. उन्हें यह झूठा किस्सा बताया,  उन्होंने सच्चाई जाने बगैर पुलिस को आदेश दे दिए. 


(* यह जाति पूर्व बंगाल जो आज का बांग्लादेश हैं  वहां की स्थानीय जाति हैं और पेशे से खेती और मछुआरे होते हैं.)


बाद में जो हुआ वह इतना भयंकर था की केवल कल्पना से ही किसी की रूह कांप जायेगी. शस्त्रों से सज्ज पुलिस और स्थानीय मुस्लिम लोगों ने मिलकर वहां के दलित हिन्दुओं पर इतनी बर्बरता दिखाई जिसकी कोई हद्द नहीं. गर्भवती महिलाओं को इस कदर पीटा गया की उनके पेट से गर्भ वहीँ पर बाहर आ गए, उनकी प्रॉपर्टीज को आग लगा दी गयी. बच्चों बूढ़ों पर गोलियां दागी गयी.


ऐसे कई किस्से थे जिसकी वजह से पाकिस्तान जाने का मंडल साहब का मोहभंग हो चूका था. बाद में इस्तीफा देकर यह महाशय भारत लौट आये और फिर गुमनामी की जिंदगी बिताने लगे. दिए गए इस्तीफे में भी उन्होंने पाकिस्तान में हो रहे धार्मिक अल्पसंख्यकों और दलितों पर किये जाने वाले भेदभाव की बात को अधोरेखित किया. मगर इनके आश्वासन पर जो पिछड़ी जाति के हिन्दू पाकिस्तान में रहे उन पर आज भी जुल्म ढाये जा रहे हैं.


विशेष बात यह हैं की पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो हिन्दू बचे हैं उनमे बहोत बड़ी संख्या में पिछड़ी जाति के हिन्दुओं की हैं. यह बात यहाँ के सेक्युलर कभी बताएँगे नहीं. उच्च जाति के हिन्दू पैसों से अमीर होने के कारण वहां से काफी पहले ही भारत चले आये थे.


नागरिकता कानून जो अभी हाल में ही बना हैं उसका लाभ सबसे ज्यादा पिछड़े वर्गों के हिन्दुओं को ही मिलने वाला हैं. यह वह वर्ग हैं जो अगर भारत में उस वक्त शामिल होता तो यहाँ के शेडूल क्लास को जो सुविधाएँ मिल रही हैं उन सभी सुविधाओं का हकदार होता. मगर दुःख इस बात का हैं जो गलती मंडल साहब जैसे पढ़े लिखे व्यक्ति ने की वही गलती आज भी यहाँ दोहराई जा रही हैं. 

गलत तरीके से सेकुलरिज्म की परिभाषा की जा रही हैं. जिस तरह ब्राह्मणों पर उनके पूर्वजों की करतूतों का बोझ डाला जाता हैं वैसा अन्य किसी पर नहीं डाला जाता,  इसका कारण भी यहाँ के पढ़े लिखे मगर इतिहास से बोध ना लेनेवाले विद्वान् ही हो सकते हैं. 

इस दोगले रवैय्ये से अरफ़ा खानम जैसे जातीयवादी सोच के लेकिन सेक्युलर वाद का चोला पहन बैठे पत्रकारों की पाखंड को सही मानी जाने का खेल कब ख़त्म होगा? इन्ही जैसे लोगों के कारण भारत में जो लोग वाकई में सेक्युलर हैं, उन पर भी कटाक्ष कर उन्हें टारगेट किया जाता हैं. 


ब्राह्मण्य एक ऐसी सोच का नाम हैं जो दूसरों के सामाजिक अधिकारों का अपहरण कर सिर्फ अपनी संपत्ति, सत्ता और अहंकार को बढ़ावा देने का काम करती हैं. यह सोच किसी एक धर्म विशेष या जाति विशेष नहीं हो सकती. यह इंसानी विकृति का लक्षण हैं. जिस दिन हम यह समझ जाएंगे वह इस देश के लिए गौरव का क्षण होगा. 
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