काशी में जलती चिताओं की राख से होली, डमरुओं की डम-डम के साथ हुई शुरू
मसाने की होली की परंपरा के दौरान एक विशेष उत्साह दिखाई देता है। जलती चिताओं की राख से होली खेलने के कारण यह काशी को एक विशेष पहचान दिलाते हुए संदेश देती है कि जब तक जिंदगी है उसे जिंदादिली के साथ जियो।
रंगभरी एकादशी के अगले दिन यानी आज शनिवार को मणिकर्णिका घाट पर भक्तों की भीड़ उमड़ी हुई थी। चारों तरफ जनसैलाब था। कहीं भी पैर टिकाने की जगह नहीं दिखाई पड़ रही थी। वहीं ऊंची-ऊंची जलती चिताओं और बुझी चिता की राख से साधु-संत और भक्त होली खेल रहे हैं।
काशी के मणिकर्णिका घाट पर हर-हर महादेव और होरी खेलें मसाने की गूंज भक्तों के कानों में पड़ी तो वह झूम उठे। घाट का अविस्मरणीय दृश्य देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे पूरा वाराणसी बाबा के दर पर आशीर्वाद पाने आ गया है। वहीं इन मनमोहक पलों को दूरदराज से आए भक्तों ने अपने कैमरे में कैद करने के साथ सदा के लिए स्मृति में संजो लिया।
मसाने की होली मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है। ऐसे में लोगों का उत्साह किसी हादसे को जन्म न दे दे, इसलिए जल पुलिस तैनात की गई और अवांछित तत्वों से निपटने के लिए आसमान में ड्रोन उड़ाकर काशी के घाटों की निगरानी की गई।
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